दिवाली पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Diwali | Importance of Diwali Festival

तमसो मा ज्योतिर्गमय का संदेश देने वाली दिवाली हर्षोल्लास के साथ लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कुबेर इत्यादि की पूजा की जाती है. दीवाली का त्योहार न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आते हैं. इस खुशी में अयोध्या वासियों ने चारों तरफ दीप जलाकर खुशी मनाई थीं.

पुराणों में उल्लेख है कि दीपावली की अर्ध रात्रि में लक्ष्मी जी घरों में विचरण करती हैं इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को सभी प्रकार से साफ, शुद्ध और सुंदर रीति से सजाया जाता है. माना जाता है कि दीपावली की अमावस्या से पितरों की रात प्रारंभ होती है. इसलिए इस दिन दीप जलाने की परंपरा है. कुबेर यंत्र, कुबेर भगवान का आशुफलकारी हैं. इसकी उपासना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, कुबेर पूजन नवरात्र, धनतेरस, दीपावली या अन्य किसी शुभ-मुहूर्त्त में किया जा सकता है.

दीवाली की शाम को लक्ष्मी जी के पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है. शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. गणेश जी बाईं तरफ विराजमान होते हैं. लक्ष्मी की पूजा पूर्व दिशा में मुंह करके विधि-विधान से की जाती हैं. घी के दीये जलाकर श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त और पुरुष सूक्त का पाठ किया जाता है।. घर के हर कोने में दीपक रखे जाते हैं.

मिठाई आदि का भोग लगाकर पूरा परिवार अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेता है. दीवाली की रात में चौपड़ खेलते हैं. दीवाली के दिन तांत्रिक अपने मंत्रों की सिद्धि के लिए विशेष पूजा करते हैं. दीपावली के दिन बेसन का उबटन लगाकर सुबह जल्दी स्नान करने का रिवाज है. लोग नारियल की जटाओं के ढेर जलाकर प्रकाश करते हैं ताकि उनके पुरखे उस उजाले में स्वर्ग की ओर जा सकें.

दीवाली के दिन रात को आतिशबाजी की जाती है, दीवाली के दिन जैन धर्म के भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है, इस दिन कुबेर जयंती का भी आयोजन किया जाता है. यमराज को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन कुछ लोग व्रत रखते हैं और दीपदान करते हैं. दीपदान धनतेरस से अमावस्या तक करना माना गया है. आज के दिन श्रीहरि की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी को ही छोटी दीवाली मनाई जाती है.

दीपदान महत्व | Importance of Deep Daan

हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दीवाली का आरंभ धन त्रयोदशी के शुभ दिन से हो जाता है. इस समय हिंदुओं के पंच दिवसीय उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो क्रमश: धनतेरस से शुरू हो कर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीवाली, गोवर्धन और भाईदूज तक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था, दिन संध्या समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाए जाते हैं.

यमदेव की पूजा करने तथा उनके नाम से दीया घर की देहरी पर रखने की एक अन्य कथा है जिसके अनुसार प्राचीन समय में हेम नामक राजा थे, राजा हेम को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. वह अपने पुत्र की कुंडली बनवाते हैं तब उन्हें ज्योतिषियों से ज्ञात होता है कि जिस दिन उनके पुत्र का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन के बाद उनका पुत्र मृत्यु को प्राप्त होगा. इस बात को सुन राजा दुख से व्याकुल हो जाते हैं.

कुछ समय पश्चात जब राजा अपने पुत्र का विवाह करने जाता है तो राजा की पुत्रवधू को इस बात का पता चलता है और वह निश्चय करती है कि वह पति को अकाल मृत्यु के प्रकोप से अवश्य बचाएगी.  राजकुमारी विवाह के चौथे दिन पति के कमरे के बाहर गहनों एवं सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर लगा देती है तथा स्वयं रात भर अपने पति को जगाए रखने के लिए उन्हें कहानी सुनाने लगती है.

मध्य रात्रि जब यम रूपी सांप उसके पति को डसने के लिए आता है तो वह उन स्वर्ण चांदी के आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर पाता तथा वहां बैठकर राजकुमारी का गाना सुनने लगाता है. ऐसे सारी रात बीत जाती है और सांप प्रात: काल समय उसके पति के प्राण लिए बिना वापस चला जाता है. इस प्रकार राजकुमारी अपने पति के प्राणों की रक्षा करती है मान्यता है की तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं और यम से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करें.