रविदास जयंती 2024

भारत की मध्ययुगीन संत परंपरा में रविदास या कहें रैदास जी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है. संत रैदास जी कबीर के समसामयिक थे. संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में सन 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया. रविदास जी को रामानन्द का शिष्य माना जाता है. इस वर्ष 2024 में यह रविदास जयन्ती 24 फरवरी के दिन मनाई जाएगी.

संत रविदास का जीवन परिचय । Biography of Sant Ravidas

रैदास जी के जन्म के संबंध में उचित प्रामाणिक जानकारी मौजूद नहीं है कुछ विद्वान काशी में जन्मे रैदास का समय 1482-1527 ई. के बीच मानते हैं तो कुछ के अनुसार रैदास का जन्म काशी में 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है. संत कवि रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था.

इनके  पिता का नाम 'रग्घु' और माता का नाम 'घुरविनिया' बताया जाता है. चर्मकार का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया. अपने कार्य को यह बहुत लगन और मेहनत से किया करते थे. उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग इनसे बहुत प्रसन्न रहते थे.

संत एवं भक्त कवि रविदास । Saint and Poet Ravidas

हिन्दी साहित्य के इतिहास में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात है. इस काल में अनेक संत एवं भक्त कवि हुए जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरूतियों को समाप्त करने का प्रयास किया. इन महान संतों कवियों की श्रेणी में रैदास जी का प्रमुख स्थान रहा है उन्होंने जाति, वर्ग एवं धर्म के मध्य की दूरियों को मिटाने और उन्हें कम करने का भरसक प्रयत्न किया.

रविदास जी भक्त और साधक और कवि थे उनके पदों में प्रभु भक्ति भावना, ध्यान साधना तथा आत्म निवेदन की भावना प्रमुख रूप में देखी जा सकती है. रैदास जी ने भक्ति के मार्ग को अपनाया था सत्संग द्वारा इन्होने अपने विचारों को जनता के मध्य पहुंचाया तथा अपने ज्ञान तथा उच्च विचारों से समाज को लाभान्वित किया.

प्रभुजी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग अंग वास समानी।।
प्रभुजी तुम धनबन हम मोरा।
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा।।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती।
जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा।।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भक्ति करै रैदासा।।

उपर्युक्त पद में रविदास ने अपनी कल्पनाशीलता, आध्यात्मिक शक्ति तथा अपने चिन्तन को सहज एवं सरल भाषा में व्यक्त करते हैं. रैदास जी के सहज-सरल भाषा में कहे गये इन उच्च भावों को समझना आम जन के लिए बहुत आसान रहा है.

उनके जीवन की घटनाओं से उनके गुणों का ज्ञान होता है. एक घटना अनुसार गंगा-स्नान के लिए रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, 'गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य जाता परंतु मैने किसी को आज ही जूते बनाकर देने का वचन दिया है और अगर मैं जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होता है. अत: मन सही है तो इस कठौती के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है. कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि - 'मन चंगा तो कठौती में गंगा’

रविदास जी के भक्ति गीतों एवं दोहों ने भारतीय समाज में समरसता एवं प्रेम भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया है. हिन्दू और मुसलिम में सौहार्द एवं सहिष्णुता उत्पन्न करने हेतु रविदास जी ने अथक प्रयास किए थे और इस तथ्य का प्रमाण उनके गीतों में देखा जा सकता है. वह कहते हैं कि तीर्थ यात्राएँ न भी करो तो भी ईश्वर को अपने हृदय में वह पा सकते हो.

का मथुरा का द्वारिका का काशी हरिद्वार।
रैदास खोजा दिल आपना तह मिलिया दिलदार।।

रैदास जयंती महत्व | Significance of Ravidas Jayanti

रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई भजन बने हैं. संत रविदास जयंती देश भर में उत्साह एवं धूम धाम के साथ मनाई जाती है. इस अवसर पर शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा शोभायात्रा में बैंड बाजों के साथ भव्य झांकियां भी देखने को मिलती हैं इसके अतिरिक्त रविदास जी के महत्व एवं उनके विचारों पर गोष्ठी और सतसंग का आयोजन भी होता है सभी लोग रविदास जी की पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.