श्राद्ध- पितर दोष से मुक्ति का आधार | Shraddha - Base To Get Relief From Pitra Dosha

श्राद्ध अवसर पर पितृदोष शांति के उपाय करने से पितर दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ दोष की शांति के लिए शास्त्रों में अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जैसे कि किन कारणों से पितृ दोष होता है और पितृ दोष की शांति कैसे करें. मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में चंद्रलोक पर पितरों का आधिपत्य रहता है और इस समय पृथ्वी का मार्ग प्रशस्त होता है. मत्स्य पुराण के अनुसार आश्विन माह में जब सूर्य कन्या राशि में रहता है, तब यमराज पितरों को अपने वंशजों से मिलने का अवसर देते हैं.

इस प्रकार पितर पृथ्वी लोक पर आकर अपने वंशजों के द्वार पर आते हैं. इसलिए श्राद्ध कर्म इस समय किए जाते हैं. श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा वंश को सुख एवं समृद्धि प्रदान कर पाता है. धार्मिक मान्यताओं अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु यदि श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करे तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं.

पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है, ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं रहे या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण, जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण उपाय किये जाते है . पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण, तथा पितृयोनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है .

ज्योतिष के अनुसार कुण्डली के नवम भाव पर जब सूर्य और राहु की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है. शास्त्र के अनुसार पितर दोष व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है.

पितृ दोष के कारण | Reasons For Pitra Dosha

पितृ दोष उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है जैसे पितरों का विधि विधान से श्राद्ध न किया जाता हो या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो.

पितृ दोष के कारण व्यक्ति का भाग्योदय देर से होता है, उसे अपनी योग्यता के अनुकूल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पडता है. हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए. क्योकि देव कार्यो से अधिक पितृ कार्यो को महत्व दिया गया है . इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए. पितर कार्यो के लिये सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात आश्चिन मास का कृ्ष्ण पक्ष समझा जाता है .

पितृदोष के प्रभाव | Effect Of Pitra dosha

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार श्राद्ध करने से संतुष्ट पितर श्राद्ध कर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सभी प्रकार के सुखों का आशिर्वाद प्रदान करते हैं. परंतु श्राद्ध न करने से पितृगण असंतुष्ट व दुःखी होकर व्यक्ति को श्राप देते हैं, और पितृश्राप के कारण वह संतानहीन हो कष्टमय जीवन जीता है, व्यक्ति शारीरिक व मानसिक व्याधियों से घिरा रहता है. इसलिए अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए. श्राद्ध पितरों के प्रति हमारे श्रद्धाभाव की अभिव्यक्ति होता है.

श्राद्ध से पितृ दोष शान्ति | Remedies For Pitra dosha

आश्विन मास के कृ्ष्ण पक्ष में श्राद्ध कर्म द्वारा पूर्वजों की मृ्त्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त कि जा सकती है.  श्राद्ध एक वैदिक कर्म है इसे पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया जाना चाहिए.

श्राद्ध समय आश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति मिलती है. यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो वह लोग इस समय अमावस्या तिथि के दिन अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं. श्राद्ध समय सोमवती अमावस्या होने पर दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से पितर दोष से मुक्ति मिल सकती है.

महालय श्राद्ध भाद्रशुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक मनाया जाता है. इस अवधि में कोई नवीन एवं मांगलिक कार्य नहीं किये जाते. जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते वे पितृण से मुक्त नहीं हो पाते हैं, फलतः उन्हें पितृ-दोष का कष्ट झेलना पड़ता है अतः व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार श्राद्ध अवश्य करना चाहिए.