दशहरे के विभिन्न रुप | Various forms of Dussehra | Other facts associated with Dussehra

रामलीला | Ramlila

दशहरा पर्व से पूर्व नौ दिनों तक कई स्थानों पर रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है. इसमें राम-सीता के जीवन की झाँकियां दिखाई जाती है. इस दौरान बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है. रामलीला नाटक का मंचन देश के विभिन्न क्षेत्रों में भी होता है और दशहरे वाले दिन रावण का संहार किया जाता है. देश भर में इस दिन विभिन्न जगहों पर रावण, कुम्भकरण तथा मेघनाथ के बडे-बडे पुतले लगाए जाते हैं और शाम को श्रीराम के वेशधारी युवक अपनी सेना के साथ पहुंच कर रावण का संहार करते हैं.

सीमोल्लंघन | Simollanghan

क्षत्रिय लोग इसे अपना एक महत्वपूर्ण त्यौहार मानते हैं. वह मानते हैं की शत्रु से युद्ध का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं को अपनी सीमा का उल्लंघन अवश्य करना चाहिए. एक बार राजा युधिष्ठिर के पूछने पर श्री कृष्ण जी उन्हें इसका महत्व बताते हुए कहा था कि विजयदशमी के दिन राजा को अपने दासों व हाथी- घोड़ों को सजाना चाहिए तथा धूम-धाम के साथ मंगलाचार करना चाहिए.

राजा अपने पुरोहित के साथ पूर्व दिशा में प्रस्थान कर अपने राज्य की सीमा से बाहर जाए और वहां वास्तु पूजा करके अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवता का पूजन करे. शत्रु की प्रतिमा अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण लगाए और पुरोहित वैदिक मंत्रों का उचारण करे. सभी कार्यों को पूर्ण करके पुन: अपने राज्य में लौट आए. इस प्रकार जो भी राजा इस विधि से विजय पूजा करता है वह सदैव अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है.

शमी पूजन | Shami Puja

विजयादशमी या दशहरे के दिन शमी पूजन एवं अश्मंतक के वृक्ष का पूजन करना चाहिए. इस पूजा के साथ एक कथा जुड़ी हुई है जो इस प्रकार है की माता पार्वती जी शमी वृक्ष की महत्ता के बारे में भगवान शिव जी से पूछती हैं तब शिव भगवान उनसे कहते हैं कि अज्ञात वास के समय अर्जुन ने अपने शस्त्रों को शमी के वृक्ष की कोटर या खोह में रख दिया था और राजा विराट के राज्य में वृहन्ना के वेश में रहने लगते हैं.

बाद में विराट के पुत्र की सहायता हेतु अर्जुन शमी के वृक्ष पर से अपने धनुष बाण उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं. इस प्रकार शमी वृक्ष ने अर्जुन के शस्त्रों की रक्षा की थी. इसके अतिरिक्त रामजी ने जब लंका पर चढाई की तब शमी वृक्ष ने उनसे कहा था की आपकी विजय अवश्य होगी, इसलिए विजयकाल में शमी वृक्ष की भी पूजा का विशेष विधान है. शमीवृक्ष यदि उपलब्ध न हो, तो अश्मंतक वृक्ष का पूजन करते हैं. शमी वृक्ष पूजन करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को प्रदान किया जाता है.

शस्त्रपूजन | Shastra Puja

दशहरा के दिन शस्त्रपूजन कर देवताओं की शक्ति का आवाहन किया जाता है, इस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिदिन उपयोग मे आने वाली वस्तुओं का पूजन करता है. यह त्योहार क्षत्रियों का मुख्य पर्व है इसमें वह अपराजिता देवी की पूजा करते हैं. यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला होता है.

दशहरा के दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है. प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे. इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं. दशहरा का पर्व समस्त पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, अहंकार, हिंसा आदि के त्याग की प्रेरणा प्रदान करता है.

अपराजिता पूजन | Aparajita Puja

विजयदशमी है को अपराजिता पूजा के नाम से भी जाना जाता है. अपराजिता संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा हैं,  अपराजिता पूजन नाम के अनुरूप ही पहचान देता है. यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में विजय प्रदान करने वाली होती है. तंत्र शास्त्र में युद्ध अथवा मुकदमेबाजी के मामले में यह बहउत प्रभावशाली पूजन होता है. शास्त्रों में इसका बहुत महत्व बताया गया है.