वक्री ग्रहों के बारे में बहुत सी बाते कही जाती हैं लेकिन फिर भी इनके विषय में अभी तक भी बहुत सी बाते छिपी हुई सी ही हैं. गोचर में जब सूर्य से छठे, सातवें व आठवें भाव में ग्रह विचरण करता है तब वह उसकी वक्र गति कहलाती है. वक्र अर्थात उलटा, लेकिन ग्रह उलटा चलता प्रतीत होता है लेकिन होता नहीं है. बुध व शुक्र की वक्र अवस्था उनके अंशों पर निर्भर करती हैं. बुध जब सूर्य से 20 अंशों की दूरी बनाता है तब वक्री होना आरंभ हो जाता है, इसी तरह से शुक्र जब सूर्य से 29 अंशों की दूरी पर जाता है तब वक्री होना आरंभ हो जाता है. कई बार बड़े ग्रह जब पांचवें व नौंवे भाव में होते हैं तब भी वक्री हो जाते हैं. इस प्रकार मोटे तौर पर कह सकते हैं कि सूर्य से पांचवें भाव से नौंवे भाव तक ग्रह वक्री अवस्था में विचरण करते हैं.

वक्री ग्रहों के बारे में सभी विद्वानों का अपना-अपना मत हैं और ज्योतिषीय ग्रंथों में भी वक्री ग्रहों के बारे में भिन्न मत हैं. मत चाहे कुछ भी हों किन्तु एक बात स्पष्ट है कि वक्री ग्रह स्वास्थ्य के नजरिए से कभी भी शुभ नहीं माने जाते हैं और व्यक्ति की किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं करते हैं. वक्री ग्रह के विषय में ज्योतिषीय ग्रंथों में क्या लिखा है, आइए जानने का प्रयास करें.

  • सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुख प्रदान करने वाले होते हैं लेकिन यदि जन्म कुंडली में वक्री ग्रह शत्रु राशि में है या बलहीन अवस्था में हैं तब वह व्यक्ति को बिना कारण भ्रमण देने वाले होते हैं. यह व्यक्ति के लिए अरिष्टकारी भी सिद्ध होते हैं.
  • संकेतनिदि के अनुसार मंगल जब वक्री होता है तब अपने स्थान से तीसरे भाव के प्रभाव को दिखाता है. गुरु वक्री होने पर अपने स्थान से पंचम भाव के फल, बुध अपने स्थान से चतुर्थ भाव का प्रभाव, शुक्र अपने स्थान से सप्तम भाव का प्रभाव और शनि अपने स्थान से नवम भाव के परिणाम देता है.
  • जातक पारिजात के अनुसार वक्री ग्रह के अलावा शत्रु भाव में किसी अन्य ग्रह का भ्रमण अपना एक तिहाई फल खो देता है.
  • उत्तर कालामृत के अनुसार जिस तरह से ग्रह अपने उच्च अथवा मूल त्रिकोण राशि में होता है ठीक वैसे ही ग्रह वक्री अवस्था में भी होता है.
  • फल दीपिका में मंत्रेश्वर जी का कथन है कि ग्रह की वक्र गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाने का काम करती है.
  • कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री होना अथवा वक्री ग्रह के नक्षत्र में होना नकारात्मक माना जाता है. काम के ना होने की संभावनाएँ अधिक बनती हैं. यदि संबंधित ग्रह वक्री नहीं है लेकिन प्रश्न के समय वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित है तब कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक कि ग्रह वक्री अवस्था में स्थित रहेगा.
  • सर्वार्थ चिन्तामणि में आचार्य वेंकटेश ने वक्री ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा का बढ़िया विवरण किया है. उनके अनुसार यदि मंगल ग्रह वक्री है और उसकी दशा/अन्तर्दशा चल रही हो तब व्यक्ति अग्नि तथा शत्रु आदि के भय से परेशान रहता है. ऎसी स्थिति में व्यक्ति एकांतवास करना चाहता है.
  • सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री बुध अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है. व्यक्ति अपने साथी व परिवार का सुख भोगता है. व्यक्ति की रुचि धार्मिक कार्यों की ओर भी बनी रहती है.
  • सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री गुरु परिवार में सुख व समृद्धि प्रदान करता है और शत्रु पक्ष पर विजय हासिल कराता है. व्यक्ति वैभवशाली जीवन जीता है.
  • शुक्र मान - सम्मान का द्योतक है इसलिए सर्वार्थ चिन्तामणि में कहा गया है कि वक्री शुक्र की दशा में व्यक्ति वाहन सुख पाता है और अपनी सुख सुविधाओं के लिए सभी तरह के साधन जुटा लेता है.
  • सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री शनि अपनी दशा/अन्तर्दशा में अपव्यय करवाता है. व्यक्ति चाहे कितने भी प्रयास क्यूँ ना कर ले उसे सफलता नहीं मिलती है. ऎसा शनि व्यक्ति को मानसिक तनाव व दुख प्रदान करता है.

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए वक्री ग्रहों के संदर्भ में बहुत सी बाते निकलकर सामने आती हैं. जैसे कि यदि कोई वक्री ग्रह बलहीन है तब वह फलित के समय बली सिद्ध होता है और यदि वक्री ग्रह बलवान है तब वह निर्बल सिद्ध होता है. लेकिन इसके साथ ही जन्म कुंडली के विश्लेषण में अन्य सभी पहलुओं पर भी विचार अवश्य कर लेना चाहिए. गोचर के वक्री ग्रहों का प्रभाव देश अथवा स्थान विशेष पर प्रभाव ज्यादा देखा जाता है. जब भी कोई मुख्य ग्रह वक्री से मार्गी होता है या मार्गी से वक्री होता है तब अपना प्रभाव अवश्य दिखाता है, यह प्रभाव व्यक्ति विशेष पर भी देखा जा सकता है.

कई विद्वानों का मत है कि शुभ ग्रह वक्री होने पर व्यक्ति को सभी प्रकार का सुख, धन आदि प्रदान करते हैं और अशुभ ग्रह वक्री होने पर प्रतिकूल परिणाम देते हैं, व्यक्ति व्यसनों का भी शिकार हो जाता है. एक मत यह भी है कि वक्री ग्रहों की दशा/अन्तर्दशा में व्यक्ति के सम्मान व प्रतिष्ठा में कमी हो सकती है. इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि क्रूर ग्रह वक्री हों तो इनकी क्रूरता बढ़ जाती है और सौम्य ग्रह वक्री हो तो इनकी सौम्यता बढ़ जाती है. यदि यात्रा के समय की कुंडली देखी जाए तब एक भी वक्री ग्रह लग्न में स्थित होना अशुभ माना जाता है.

कई विद्वानों का यह भी मत है कि गोचर के वक्री ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं उससे एक भाव पीछे से फल प्रदान करते हैं. कई अन्य लोगों का यह भी मत है कि भाग्येश यदि वक्री ग्रह हो तब ऎसा व्यक्ति अति भाग्यवान समझा जाता है. इसलिए वक्री ग्रहों को सदा अनिष्टकारी नहीं समझना चाहिए. कई बार किसी विशेष स्थान व विशेष योग में शामिल वक्री ग्रह अत्यधिक शुभ फल प्रदान करते हैं और व्यक्ति इनकी दशा/अन्तर्दशा में काफी ऊंचाईयों तक भी पहुंचता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में कोई ग्रह वक्री है तो गोचर में जब यही ग्रह पुन: वक्री होता है तब व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. आइए वक्री ग्रहों के शुभ फलों के बारे में और जानकारी प्रदान करने का प्रयास करते हैं. पाठकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सूर्य व चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं और राहु/केतु सदैव वक्री रहते हैं.

मंगल ग्रह | Mars Planet

मंगल को सभी ग्रहों में क्रूरतम ग्रह माना जाता है, इसके प्रभाव से व्यक्ति अति शीघ्र क्रोध से भर जाता है और उत्तेजित रहता है. जिनकी कुंडली में मंगल वक्री रहते हैं ऎसे व्यक्तियों के वैज्ञानिक, डॉक्टर अथवा गूढ़ विद्याओं में रुचि रखने की संभावना अधिक बनती है. जिन मजदूरों की जन्म कुंडली में मंगल वक्री अवस्था में स्थित होता है वह काम करने की बजाय जरा - जरा सी बात पर उत्तेजित होकर हड़ताल पर ज्यादा रहते हैं.

बुध ग्रह | Mercury Planet

बुध के बारे में कहा गया है कि वह जिन ग्रहों के सथ स्थित होता है उनके अनुसार शुभ अथवा अशुभ फल देता है. बुध यदि पाप ग्रहों के साथ है तो पापी और शुभ ग्रहों के साथ है तो शुभ फल प्रदान करता है. जिनकी जन्म कुंडली में बुध वक्री होता है वह जल्दी ही मुसीबत में घबरा जाते हैं और स्वभाव से कमजोर भी होते हैं. लेकिन जब-जब गोचर में बुध वक्री होता है तब-तब इन व्यक्तियों की बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है. इस समय यह समाज की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने में अत्यधिक सक्षम भी होते हैं और बहुत ही निराले रुप से काम करते हैं.

बृहस्पति ग्रह | Jupiter Planet

बृहस्पति यदि किसी की जन्म कुंडली में वक्री हो तो यह भी शुभ फल प्रदान करता है. ऎसे व्यक्ति बहुत ही विलक्षण प्रतिभा के धनी होते हैं. जब तक यह अपने कामो को अंजाम तक नहीं पहुंचा देते हैं तब तक उसे करने के लिए प्रयासरत रहते हैं, कोई काम अधूरा नहीं छोड़ते हैं, अन्तत: पूरा कर ही लेते हैं. यदि ऎसे व्यक्तियों का कोई काम बीच में पड़ा हो और किसी कारणवश वह उसे नहीं कर पाते हैं तब गोचर में बृहस्पति के दुबारा वक्री होने पर वह अपने काम को पूरा कर ही लेते हैं.

शुक्र ग्रह | Venus Planet

जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शुक्र वक्री अवस्था में होता है वह धार्मिक स्वभाव के होते हैं. धर्म पर विश्वास रखने के कारण ही व्यक्ति कई बार लोकप्रियता भी हासिल करता है. शुक्र जब गोचरवश वक्री होता है तब व्यक्ति सत्यवादी होने साथ क्रूर भी हो जाता है. ऎसे में यदि व्यक्ति किसी का प्रेम या सम्मान नहीं पाता है तब विद्रोही भी हो जाता है. यदि व्यक्ति किसी कला के क्षेत्र से आजीविका कमाता है तब गोचर के शुक्र के समय यह अपने व्यवसाय में अच्छा नाम कमाते हैं.

शनि ग्रह | Saturn Planet

जिनकी जन्म कुंडली में शनि वक्री होता है और जब उनके युवा होने पर शनि वक्री होता है तब उस दौरान व्यक्ति स्वभाव से शक्की हो जाता हैं. साथ में ऎसे व्यक्ति स्वार्थी भी हो जाते हैं. ऎसे व्यक्तियों में दिखावे की प्रवृति अधिक पाई जाती है. व्यक्ति ऊपर से कुछ तो भीतर से कुछ ओर होता है. बाहर से ऎसे व्यक्ति सिद्धांतवादी होने का दिखावा करते हैं लेकिन अंदर से नीरे खोखले ही होते हैं और प्राय: स्वभाव से इन्हें लचीला ही देखा गया है.