लग्नेश के उच्च राशिस्थ होने के साथ-साथ दशमेश और चतुर्थेश के मध्य विनिमय परिवर्तन योग होने पर निर्मित होता है. चाप योग की परिभाषाओं में कुछ भिन्नता देखने को मिलती है. यदि कुण्डली में चतुर्थ और दशम स्थानों के स्वामी एक दूसरे के स्थान में हों अर्थात चतुर्थेश दशम में और दशमेश चतुर्थे में तथा लग्नेश अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो चाप योग की संरचना होती है.

"बन्धु कर्म गृहाधीशैरन्यो न्यक्षेत्रमाश्रितै:।
लग्नेशे स्वोच्चराशिस्थे चापयोग इतीरित:।।
नृप: स वीरो विख्यातो सेनाधिक्यो धनाधिप:
कुरूते कार्मुके जातो द्वादशाब्दात् परं मुनि: ।।"

इसके अतिरिक्त जन्म कुण्डली में यदि धनु लग्न में जन्म हुआ हो और उपयुक्त ग्रह स्थिति हो तो चाप योग का निर्माण होता है. एक दूसरे प्रकार से चाप योग निर्माण देखा गया है जिसके अनुसार कुंभ लग्न के जन्मांग में शुक्र के लग्नस्थ होने अथवा मंगल के तृतीय भावस्थ होने तथा गुरू के लाभ भाव अथवा धन भव में स्थित होने पर बनता है.

मानसागरी अनुसार:-

"शुक्रे घटे कुजे मेषे स्वस्थो देवपुरोहित:।
तदा राजा भवेन्नूनं चाप: सौध्यति दिड़्मुख:।।"

कुण्डली में यदि शुक्र कुम्भ में स्थित हो, मंगल मेष राशि में स्थित हो तथा गुरू स्वस्थान धनु या मीन में स्थित हो तो चाप योग की रचना संभव हो पाती है.

ज्योतिषतत्वम अनुसार :-

"कुम्भे कवौ तीव्रविलोचनेजे स्वरर्चितांघ्रौ स्वगृहं प्रयाते।
चापाभिधानं कथयन्ति योग महानुभावा: ||"

इस परिभाष के अनुसार कुम्भ में शुक्र, मेष में मंगल और गुरू के स्वराशि में स्थित हों तो चाप योग का निर्माण होता है. इन परिभाषाओं के द्वारा इस तथ्य का बोध होता है कि कुंभ राशिगत शुक्र के साथ मेष राशिगत मंगल और मीन अथवा धनु राशिगत गुरू के होने पर चाप योग की रचना होती है, क्योंकि कुंभ लग्न के जन्मांग में शुक्र योगकारक होता है और चतुर्थेश तथा नवमेश होने के कारण शुक्र का प्रभाव उत्तम माना जाता है. इसी प्रकार चाप योग में गुरू का स्वराशि का होन अभी आवश्यक होता है क्योंकि कुम्भ लग्न के जातक के लिए बृहस्पति धनेश एवं लाभेश होकर धनकारक बनता है.

चाप योग का फल | Results of Chaap yoga

चाप योग के प्रभाव स्वरुप यह जिस भी कुण्डली में बनता है वह जातक सेनानी, वीर, साहसी और विजेता बनता है. ऎसे जातक का भाग्योदय 19वें वर्ष के पश्चात होता हुआ देखा जा सकता है. कुछ के अनुसार आयु के 18वें वर्ष के उपरांत जातक को उच्च पदों की प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्रों में चाप योग की परिभाषा को इस प्रकार बतया गया है कि यदि लग्नेश उच्च हो और चतुर्थेश दशमस्थ हो एवं दशमेश चतुर्थस्थ हो तो चाप योग का निर्माण देखा जाता है. जिसमें जातक को राज्य से सम्मान एवं पद प्राप्ति होती है ओर उसके बल में वृद्धि होती है.

चाप योग की परिभाषाओं के अनुसार और इसके प्रभावों को देखते हुए कहा जा सकता है कि चतुर्थेश और दशमेश के मध्य परिवर्तन हो और लग्नेश उच्च राशिस्थ एवं बली हो तो व्यक्ति को राज से प्रतिष्ठा प्राप्ति होती है, यदि यह योग बली रुप में स्थित हो तो जातक को जीवन में कुछ अच्छे अवसर प्राप्त हो सकते हैं. जातक को कोषाध्यक्ष या मंत्री पद भी मिल सकता है. ऎसा जातक उत्तम अधिकार पाने वाला बनता है, परंतु यदि योग निर्बल बन रहा हो तो व्यक्ति को छोटे पदों की प्राप्ति होती है.

ज्योतिष ज्ञाताओं के अनुसार चाप योग का वास्तविक स्वरुप इस प्रकार देखा जा सकता है कि अधिकतर जातक इस योग के प्रभाव से बैंक जैसे क्षेत्रों अथवा वित्त विभाग में कार्यरत देखे जा सकते हैं.