विष्टि करण किसे कहते है और इसका जीवन पर प्रभाव

पंचांग का एक महत्वपूर्ण विषय है करण. पंचांग के पांच अंगों में करण भी विशिष्ट अंग होता है. करण कुल 11 हैं और प्रत्येक तिथि दो करणों से मिलकर बनी होती है. इस प्रकार कुल 11 करण होते हैं. इनमें से बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि करण ये करण चर करण कहलाते है, और अन्य शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न स्थिर या ध्रुव करण कहलाते हैं.

पंचांग में करण का प्रभाव और इसका विस्तार पूर्वक विवेचन करना भी अत्यंत आवश्यक होता है. कुछ करण शुभ होते हैं तो कुछ अशुभ होते हैं. किसी भी योग के निर्माण में इन को भी ध्यान में रखा जाता है. योग की शुभता और अशुभता का प्रभाव जातक पर और मुहूर्त पर सभी पर पड़ता है. एक शुभ करण शुभता को बढाता है तो एक अशुभ करण शुभता में कमी लाकर अशुभ प्रभाव देता है.

विष्टि करण

करणों में विष्टि करण को अच्छा करण नहीं माना जाता है. इसके प्रभाव में शुभता में कमी आती है. विष्टि को भद्रा के नाम से भी जाना गया है. अपने नाम के अनुरुप ही ये फल भी देता है. करण तिथि का आधा भाग होता है. ये चर और स्थित करण में विभाजित हैं. विष्टि 7वें स्थान में आने वाला करण है. विष्टि करण में शुभ कार्य को नहीं किया जाता है. शुभ काम इस समय पर टाल देने की सलाह दी जाती है. ज्योतिष के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में विचरण करती है. जब यह मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधा पहुंचाने वाली अथवा उनकी शुभता को अनिष्ट में बदल देने का काम कर सकती है.

मुहुर्त निर्माण में विष्टि करण का महत्व

जब किसी शुभ मुहुर्त को बनाने की प्रक्रिया शुरु होती है तो, इस क्रम में सभी शुभ बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे की शुभ तिथि का होना, शुभ समय का होना, शुभ नक्षत्र होना, शुभ वार का होना और शुभ करण का होना. इन सभी की शुभ स्थिति के परिणाम स्वरुप ही हम एक शुभ मुहूर्त का निर्माण कर पाते हैं. ऎसे में जब किसी शुभ समय के निर्माण में विष्टि करक आ रहा हो तो इसका त्याग करना ही बेहतर होता है.

विष्टि करण में कौन से काम निषेध होते हैं

विष्टि करण में शुभ मांगलिक कार्यों को नही किया जाता है. इस में विवाह संस्कार, गृह प्रवेश, नौकरी ज्वाइनिंग जैसे शुभ कामों को नही किया जाता है. गृह निर्माण आरंभ, कोई शुभ यात्रा, कोई नया काम आरंभ करना, किसी से मित्रता करना और जो भी कोई अच्छा मांगलिक काम करते समय विष्टि करण को त्यागने की ही बात होती है. इस समय पर किए हुए कामों में किसी न किसी कारण से व्यवधान पड़ जाते हैं.

विष्टि करण में किए जाने वाले कार्य

भद्रा समय में कठोर कर्म को अनुकूल कहा जाता है. इसमें अनिष्टकारी काम ही बेहतर माने जाते हैं. युद्ध जैसे काम, किसी पर प्रहार करने के काम, कैद में रखना या किसी को सताना, जहर देने का काम या किसी पर मुकदमा करना या चलाना अपने विरोधी को प्रताडि़त करना इत्यादि काम इसमें कर सकते हैं.

विष्टिकरण प्रभाव और काम

विष्टि करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति गलत कार्यो में शीघ्र शामिल हो सकता है. अनुचित कार्य करने के कारण उसे कई बार मान-हानि का सामना भी करना पडता है. धन के प्रति अत्यधिक महत्वकांक्षी होने के कारण संभवत: वह व्यक्ति यह कार्य करता है.

इस करण में जन्म लेने के कारण वह विपरीतलिंग विषयों में अधिक रुचि ले सकता है. इसके कारण उसका स्वयं का वैवाहिक जीवन प्रभावित हो सकता है. दवाईयों का निर्माण और दवाईयों से जुडा व्यापार कार्य करने से व्यक्ति को आजिविका प्राप्त होने के योग बनते है. इस योग का व्यक्ति प्रयास करने पर चिकित्सा जगत में उतम धन और मान कमा सकता है. जिस तिथि में विष्टि करण चल रहा हो, वह तिथि भद्रा तिथि कहलाती है. विष्टिकरण भद्रा तिथि कहलाता है. भद्रा तिथि में शुभ कार्य करने वर्जित है.

विष्टि करण में जन्मा जातक

इस करण में जन्मा जातक, कुछ कठोर भाषी और निड़र होता है. स्वास्थ्य के लिहाज से उसे परेशानियां अधिक रह सकती हैं. ज्योतिषशास्त्र में विष्टि करण शुभ नहीं माना जाता है. इस करण में जन्मा जातक इस करण के अशुभ प्रभाव से प्रभावित अवश्य होता है. व्यक्ति अपने कामों में गलत बातों की ओर जल्द ही आकर्षित होता है. उसके काम के कारण दूसरे लोग आशंकित अधिक रहते हैं. व्यर्थ के विवाद में फंसना अपने स्वभाव के कारण दूसरों के साथ द्वेष मोल लेना जातक के व्यवहार में दिखाई देता है. लोगों के साथ बहुत अधिक घुलना-मिलना व्यक्ति को पसंद नहीं आता है.

जातक का आचरण भी प्रभावित रहता है. दूसरों की वस्तु को पाने के लिए ललायित रहता है. अपने विरोधी से बदलना लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.