कुण्डली में अगर बने हल-श्रंगाटक(श्रृंगाटक)-वापी योग तो बन सकते हैं धनवान

ज्योतिष में नभस योग का बहुत महत्व रहा है. इन योगों के सहयोग द्वारा जातक के जीवन में होने वाली घटनाओं ओर भाग्य का निर्धारण में भी बहुत अधिक सहायक बनते हैं. नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से अलग होते हैं. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृत किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के स्वामीत्व या उसकी दशा अवधि के आधार पर नहीं देखा जाता है. इन योगों से मिलना वाला फल स्वतन्त्र रुप से देखा जाता है.

नभस योगों में शुभ और अशुभ दोनों ही तरह के योग आते हैं. यह योग जातक की कुण्डली और उसके भाग्य में होने वाली संभावनाओं को दर्शाते हैं जैसे की जातक अपने जीवन में किस प्रकार आगे बढ़ सकता है, उसे अपने संघर्ष से किस प्रकार सफलता मिल सकती है, इसके साथ ही आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक रुप से जातक कैसी स्थितियां झेल सकता है.

हल योग क्या होता है

हल योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में सभी ग्रह कुण्डली में लग्न से धन भाव और एक दूसरे से धन भावों में स्थित होते है. हल के आकार के रुप में यह जन्म कुण्डली में बनता है. यह योग नभस योगों में से है, अत: इसका नाम ग्रहों की स्थिति के अनुसार बनने वाली आकृति के अनुसार इस योग का नाम रखा गया है. हल योग का प्रभाव जातक को मेहनती बनाता है.

हल योग कैसे बनता है

जब त्रिकोण की आकृति में स्थित हों, अर्थात लग्न से 2, 6, 10 भाव अथवा 3, 7, 11 अथवा 4, 8, 12 भावों में हो, तो हल योग बनता है. अपने नाम के अनुरुप ही हल योग के प्रभाव से व्यक्ति को प्रोपर्टी से लाभ मिल सकता है. इस योग से युक्त व्यक्ति भूमि और भूमि से जुडे क्षेत्रों से आय प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके साथ ही उसे कृषि क्षेत्रों से लाभ प्राप्त होते है.

इस योग वाले व्यक्ति को खनन के कार्यों से आजीविका की प्राप्ति हो सकती है. वह शारीरिक परिश्रम के कार्य करने में कुशल होता है. इस योग वाला व्यक्ति भूमि से जुडे कार्यो को कुशलता से कर सकता है. इसलिए ऎसे व्यक्तियों को भूमि के क्रय-विक्रय से संबन्धित कार्य करना लाभकारी रहता है.

इस योग में जातक मेहनती होता है. वह अपने प्रयास द्वारा जीवन की कठिनाईयों को दूर करने के लिए हमेशा प्रयत्नशील भी रहता है. जातक को अपने कार्यक्षेत्र में अपनी मेहनत से ही आगे बढ़ता है. वह अच्छा मित्र हो सकता है.

श्रंगाटक योग

श्रंगाटक योग कुण्डली के त्रिकोण भावों के सहयोग से बनने वाला योग है. ज्योतिष शास्त्र में त्रिकोण भावों को कुण्डली के सबसे शुभ भाव कहा गया है. इन भावों में अधिक से अधिक शुभ ग्रह होना, व्यक्ति के जीवन की घटनाओं में शुभता लाते है. इस योग का नाम श्रंगाटक योग इसलिए रखा गया है, क्योंकि जब ग्रह तीनों त्रिकोण भावों में होते है, तो वे कुण्डली के गले में पडे हार का आभास देते है. इन भावों से कुण्डली के सौन्दर्य में वृद्धि होती है.

इस योग के प्रभाव से जातक को अपने जीवन के बहुत से क्षेत्रों में सफलता पाने के अच्छे मौके मिलते हैं. काम के क्षेत्र में यात्राओं के भी मौके मिलते हैं. जातक देश-विदेश की यात्राओं पर जाने का मौका भी पाता है. व्यक्ति को कई उच्च वरिष्ठ लोगों के साथ मेल जोले के अवसर मिलते हैं.

इस योग के प्रभाव से व्यक्ति कला के क्षेत्र में भी नाम कमाने की योग्यता रखता है. जातक के लिए रचनात्मक क्षेत्र से जुड़ा हुआ काम भी सफलता दिलाने में सहायक बनता है. परिवार की ओर से सहयोग और सुख की प्राप्ति भी होती है और मित्रों का साथ भी मिलता है.

श्रंगाटक योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में सभी ग्रह लग्न, पंचम व नवम भाव में हो तो यह योग बनता है. यह योग व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रों से आय प्राप्त करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को सेना में कार्य करने के अवसर प्राप्त होता है. उस व्यक्ति में साहस और वीरता सामान्य से अधिक पाई जाती है. यह योग शुभ स्थानों में बनने के कारण ही इतना शुभ प्रभाव देने में सक्षम होता है. कुछ मामलों में यह योग में शुभता की कमी ग्रहों के बल से दिखाई देता है.

वापी योग - नभस योग

वापी योग में केन्द्र भाव ग्रहों से रिक्त होते है. केन्द्रों में किसी ग्रह के न होने के कारण व्यक्ति आन्तरिक रुप से कमजोर होता है. जीवन के उतार-चढाव की स्थिति उसे शीघ्र प्रभावित करती है. ऎसे व्यक्ति में संघर्ष करने की क्षमता कम ही पाई जाती है.

यह योग शुभता में कमी को दर्शाता है. केन्द्र स्थानों का खाली होना एक प्रकार की सकारात्मकता में कमी को देने वाला होता है. इस योग के प्रभाव से जातक को जीवन में संघर्ष अधिक करना पड़ सकता है. काम के क्षेत्र में लगातार किए जाने वाले प्र्यास ही सफलता दिला सकते हैं. रोग और शत्रुओं का प्रभाव भी जीवन में बहुत अधिक असर डालने वाला होता है.

वापी योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में सभी ग्रह केन्द्र स्थानों के अलावा अन्य स्थानों अथवा पणफर 2, 5, 8, 11 और अपोक्लिम भावों 3, 6, 9, 12 भावों में हो तो वापी योग बनता है. वापी योग व्यक्ति को कला प्रिय बनाता है, व्यक्ति को धन संचय में रुचि होती है. तथा ऎसा व्यक्ति सदैव धन प्राप्ति के प्रयास के लिए तत्पर रहता है. इस योग से युक्त व्यक्ति अपने क्षेत्र में उच्च पद पर आसीन होता है. व्यक्ति को सभी सुख- सुविधाएं प्राप्त होने के योग बनते है.

इस योग से बंधन की स्थिति भी दिखाई देती है. परिवार की ओर से संघर्ष भी मिलता है, समय पर किसी का साथ नहीं मिल पाता है. परिवार की जिम्मेदारी भी जातक पर होती है. जीवन में अचानक से होने वाली घटनाओं का प्रभाव भी बहुत अधिक होता है. व्यक्ति कई बार अपनी शिक्षा या अपने आर्थिक क्षेत्र में व्यवधान के कारण आगे नहीं बढ़ पाता है. पैतृक संपत्ति का सुख भी नही मिल पाता है.