ऋषि अत्रि का ज्योतिष में योगदान

ज्योतिष के इतिहास से जुडे 18 ऋषियों में से एक थे ऋषि अत्रि. एक मान्यता के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के द्वारा हुआ था. भगवान श्री कृष्ण ऋषि अत्रि के वंशज माने जाते है. कई पीढीयों के बाद ऋषि अत्रि के कुल में ही भगवान श्री कृ्ष्ण का जन्म हुआ था. यह भी कहा जाता है, कि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्र उत्पन्न हुए थे, उसमें ऋषि पुलस्त्य, ऋषि पुलह, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि कौशिक, ऋषि मारिचि, ऋषि क्रतु, ऋषि नारद है. इन महाऋषियों के ज्योतिष के प्राद्रुभाव में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

ब्रह्मा के मानस पुत्र

हिंदू धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक ऋषि अत्री एक महान कवि और विद्वान थे. अत्री मुनि नौ प्रजापतियों में से एक तथा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे. अत्री एक गोत्र भी है जिस कारण इस गोत्र में जन्में व्यक्ति अत्री ऋषि के वंशज माने गए. ऋषि अत्री का स्थान सप्तऋषियों में लिया जाता है उनकी महानता एवं विद्वता से प्राचीन ग्रंथ भरे पडे़ हैं. संपूर्ण ऋग्वेद दस मण्डलों में से एक ऋग्वेद के पंचम मण्डल के मंत्र द्रष्टा महर्षि अत्रि हैं जिस कारण इसे आत्रेय मण्डल कहा जाता है.

ब्रह्मा जी के यही सात पुत्र आकाश में सप्तर्षि के रुप में विद्यमान है. इस संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. तारामंडल का प्रयोग दिन, तिथि, कुण्डली निर्माण, त्यौहार और मुहूर्त आदि कार्यो के लिए किया जाता है. व इन सभी का उपयोग भारत की कृषि के क्षेत्र में प्राचीन काल से होता रहा है.

ज्योतिष के इतिहास के ऋषि अत्रि का नाम जुडा होने के साथ साथ, देवी अनुसूया और रायायण से भी ऋषि अत्रि जुडे हुए है. भगवान राम और सीता जब इनसे मिलने के लिए ऋषि अत्रि के आश्रम जाते हैं तो वहां उनका साक्षात्कार देवी अनुसूया से भी होता है. वहीं देवी अनुसूया सीता जी को पतिधर्म की शिक्षा देती हैं ओर उन्हें भेंट स्वरुप दिव्यवस्त्र भी प्रदान करती हैं. इसी के अलावा महाभार्त में भी ऋषि अत्रि के विषय में ओर उनके गोत्र से संबंधित विचार भी मिलता है.

ज्योतिष में ऋषि अत्रि का योगदान

ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्धांत आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. इसके साथ ही अत्री संहिता की रचना हुई, महर्षि अत्रि को मंत्र की रचना करने वाले और उसके भेद को जानने वाला भी कहा गया है. अपनी त्रिकाल दृष्टा शक्ति से इन्हेंने धार्मिक ग्रंथों की रचना भी की और साथ ही इनकी कथाओं द्वारा चरित्र का सुन्दर वर्णन किया गया है. महर्षि अत्रि को बौद्धिक, मानसिक ज्ञान, कठोर तप, उचित धर्म आचरण युक्त व्यवहार, प्रभु भक्ति एवं मन्त्रशक्ति के जानकार के रुप में सदैव पूजा जाता रहा है.

ऋषि अत्रि द्वारा ज्योतिष में शुभ मुहुर्त एवं पूजा अर्चना की विधियों का भी उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद के आत्रेय मण्डल, कल्याण सूक्त स्वस्ति-सूक्त इन्ही द्वारा रचे बताए गए हैं. इन के अंतर्गत महर्षि अत्रि ने पूजा पाठ एवं उत्सव किस प्रकार मनाए जाएं इन विषयों का वर्णन किया है. इन्होंने जिन सूक्तों का वर्णन किया है उन्हें आज भी मांगलिक कार्यों एवं किसी न किसी शुभ संस्कारों और अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता रहा है.

अत्रि ऋषि का विवाह देवी अनुसूया जी के साथ हुआ था. देवी अनुसूया को पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली श्रेष्ठ नारियों में स्थान प्राप्त है. ऋषि अत्रि और अनुसूया ने अपनी साधना और तपस्या के बल पर त्रिदेवों को संतान रुप में प्राप्त किया. इन्हें विष्णु के अंश रुप में दत्तात्रेय, भगवान शिव के अंश रुप में दुर्वासा और ब्रह्माजी के अंश रुप में सोम की प्राप्ति होती है.

आयुर्वेद में योगदान

आयुर्वेद और प्राचीन चिकित्सा क्षेत्र सदैव ऋषि का आभारी रहेगा. इन्हें आयुर्वेद में अनेक योगों का निर्माण किया. पुराणों के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के नेत्रों से हुआ माना जाता है. ऋर्षि अत्रि को चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपुर्ण उपलब्धी प्राप्त रही है.

प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार देवताओं के चिकित्स्क अश्विनी कुमारों ने ऋषि अत्रि को वरदान प्रदान किया. ऋगवेद में भी इस विषय के बारे में विस्तार पूर्वक एक कथा का उल्लेख भी मिलता है. कथा अनुसार एक बार ऋषि अत्रि पर दैत्यों द्वारा हमला होता है पर जिस समय दैत्य उन्हें मारने का प्रयास कर रहे होते हैं तो उस समय ऋषि अत्रि साधना में लिप्त होते हैं. अपनी आधना की ध्यान अवस्था में उन्हें अपने ऊपर हुए इस जानलेवा हमले का बोध नही होता है. ऎसे में उस समय पर अश्विनी कुमार इस घटना के समय वहां उपस्थित होते हैं और ऋषि अत्रि को उन दैत्यों से बचा लेते हैं.

इसके अतिरिक्त भी एक अन्य कथा है की अश्विनी कुमारों ने ऋषि अत्रि को यौवन प्राप्ति का वरदान देते हैं और उन्हें नव यौवन प्राप्त कैसे किया जाए इस विधि का भी ज्ञान देते हैं.

ऋषि अत्रि और उनका जीवन दर्शन

अत्री संहिता में बहुत से ऎसे विषयों पर विचार किया गया है जो मनुष्य के सामाजिक एवं आत्मिक उत्थान की बात करते हैं. व्यक्ति के नैतिक कर्तव्यों एवं उसके अधिकारों का का वर्णन भी इसमें मिलता है. इस संहिता में व्यक्ति को सहृदय और करुणा से युक्त और दूसरों का उपकार करने वाला कहा गया है. अपने परिवार मित्र के साथ कैसा व्यवहार किया जाए इन बातों का उल्लेख भी हमे इससे प्राप्त होता है.