ज्योतिष्करण्डक - ज्योतिष का इतिहास | Jyotishkarandka | Jyotisha History | Jyotishkarandka Texts Details

ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत वृ्त के लग्न नक्षत्र माने गये है. इस ग्रन्थ में राशि की अवस्थाओं के अनुसार नक्षत्रों का लग्न माना जाता है. इस ज्योतिष ग्रन्थ में व्यक्ति के जन्म नक्षत्र को लग्न मानकर फलित करने के नियम का प्रतिपादन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ विवरण | Jyotishkarandka  Texts Details 

यह ग्रन्थ प्राकृ्ति भाषा में लिखा गया है, जैन न्याय, ज्योतिष और दर्शन का ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ में माना जाता है, कुल 167 गाथाएं दी गई है. इस ग्रन्थ का उल्लेख कल्प, सूत्र, निरुक्त और व्याकरण नामक ग्रन्थों में मिलता है. सोलह संस्कारों में प्रयोग होने वाले मूहुर्तों का भी यहां वर्णन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ में कृ्तिका नक्षत्र, घनिष्ठा, भरणी, श्रवण, अभिजीत आदि नक्षत्रों में गणना का विश्लेषण किया गया है. यह ग्रन्थ विवाह संबन्धी नक्षत्रों में उत्तराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढा, श्रवण, घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्चिनी आदि नक्षत्र विवाह के नक्षत्र बताये गये है.  

यह ग्रन्थ ई. पू़ 300 से 400 का है.  इस समय के अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में राशियों की विशेषताओं का विस्तृ्त रुप में वर्णन किया गया है. इन ग्रन्थों में दिन-रात्रि,शुक्ल-कृ्ष्ण पक्ष, उत्तरायण, दक्षिणायन का कई स्थानों पर वर्णन किया ग्या है. संवत्सर, अयन, चैत्रादि, मास, दिवस, मुहूर्त, पुष्य, श्रवण, विशाखा आदि नक्षत्रों की व्याखा की गई है.