जानिए, सप्तमी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

एक हिन्दू तिथि सूर्य के अपने 12 अंशों से आगे बढने पर तिथि बनती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य देव है, तथा प्रत्येक पक्ष में एक सप्तमी तिथि होती है. सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है. इस तिथि में जातक को सूर्य का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है. सूर्य ग्रह की शुभता को प्राप्त करने के लिए ये तिथि बहुत उपयोगी सिद्ध होती है.

इस तिथि में सूर्य देव का पूजन और उनके निमित्त व्रत का पालन करने से जातक को जीवन में सफलता और सम्मान की प्राप्ति होती है. सप्तमी तिथि संतान प्राप्ति हेतु भी बहुत शुभफल प्रदान करने वाली भी होती है.

सप्तमी तिथि में जन्मा जातक

इस तिथि में जन्मा जातक अपने कार्यों को लेकर काफी सजग और जिम्मेदार होता है. जातक में नेतृत्व करने की क्षमता अच्छी होती है. परिवार में लोगों के साथ मेल-जोल अधिक न रह पाए. जातक को स्वयं में रहना पसंद होता है. लोगों के साथ बहुत अधिक मेल-मिलाप न करें. घूमने फिरने का शौक रखता है.

जातक धनवान होता है और अपनी मेहनत से जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश भी करता है. जातक में प्रतिभा होती है अगर इनकी प्रतिभा को पहचान लिया जाए तो ये जातक बहुत आगे तक जाते हैं और लोगों के मध्य लोकप्रिय भी बनते हैं.

कलाकार भी होते हैं और अपनी मन की अभिव्यक्ति को प्रभावशाली रुप से दूसरों के सामने रखते भी है. गौर वर्ण के और दिखने में सुंदर होते हैं. जीवन साथी की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है और किसी न किसी कारण से संबंधों में तनाव भी झेलना पड़ सकता है.

सप्तमी तिथि वार योग

सप्तमी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो एक अशुभ योग बनता है. इस योग को क्रकच योग कहा जाता है. इस योग को सभी शुभ कार्यो में छोड दिया जाता है. सोमवार और शुक्रवार के दिन अगर यह तिथि किसी मास में आती है, तो वह मृत्यु योग बनाती है. इसके अलावा बुधवार के दिन सप्तमी तिथि होने पर सिद्धिदा योग बनता है.

मृत्यु योग अशुभ योग है, व सिद्धिदा योग शुभ योग है. सिद्धिदा योग में सभी कार्य सिद्ध होते है. इस तिथि के स्वामी क्योकि भगवान सूर्य देव है, इसलिए विवाह के लिए इस तिथि का प्रयोग नहीं किया जाता है. इस तिथि में विवाह करने से व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती है.

सप्तमी तिथि व्यक्ति विशेषताएं

सप्तमी तिथि में जन्म लेने वाले में व्यक्ति में संतुष्टी का भाव होता है. वह तेजस्वी होता है, अपनी विद्वता से किए गये कार्यो में उसे सफलता मिलती है. यह योग व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि करता है. वह अनेक गुणों से युक्त होता है. इसके साथ ही वह धन और संतान से सम्पन्न होता है. काम करने में कुछ आलसी हो सकता है. व्यक्ति काम निकलवाने की योग्यता रखता है.

सप्तमी तिथि करने वाले काम

सप्तमी तिथि के दिन कुछ नए कार्य जिनमें उत्साह हो और जो शुभ मंगल से भरे हुए काम इस समय किए जा सकते हैं. किसी नए स्थान पर जाना, कुछ नई चीजों को करने के लिए भी इस तिथि को अनुकूल माना गया है.
विवाह, नृत्य- संगीत से जुड़े काम नए वस्त्र एवं गहनों को धारण करना इस दिन शुभ होता है. चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन जैसे शुभ संस्कार इस तिथि समय पर किए जाते हैं.

इस तिथि में जन्मा जातक भाग्यशाली होता है. गुणवान होता है उसकी काबिलियत सभी के मन में उसके लिए सम्मान भी लाती है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तमी तिथि को शुभ माना गया है. माँ कालरात्रि की पूजा का दिन भी सप्तमी तिथि का होता है जो संकटों का नाश करने वाली है. जातक को संतान की ओर से भी प्रेम ओर सहयोग मिलता है. जीवन में बहुत सी चीजों को लेकर इनके मन में संतोष की भावना रहती है.

सप्तमी तिथि में मनाए जाने वाले त्यौहार

विष्णु सप्तमी -

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन विष्णु सप्तमी मनाई जाती है. विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कामों में सफलता मिलती है. साथ ही कोई काम अगर रुका पड़ा है तो उसका अटकाव खत्म हो जाता है. विष्णु पुराण में भी इस विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्य और मोक्षदायिनी कहा गया है. सूर्य की पूजा इस तिथि को करने पर सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है.

पुत्रदा सप्तमी व्रत -

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि को पुत्रदा अथवा संतान सप्तमी के नाम से जाना जाता है. अपने नाम के अनुरूप ही यह व्रत निसंतान लोगों के लिए वरदान के समान होता है. इस व्रत का पालन संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा एवं बच्चों की प्रगती एवं उन्नति के लिये किया जाता है. इस दिन भगवान शिव एवं माँ गौरी की पूजा का विधान होता है. इस व्रत को दंपति को मिलकर करने से शुभ फल में वृद्धि होती है. इस दिन प्रात: समय स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. प्रसाद एवं भोग रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है.

मित्र सप्तमी -

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मित्र सप्तमी मनाई जाती है. सूर्य के अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी पुकारा जाता है सूर्योपासना का उत्सव श्रृद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा के समय लोग पवित्र नदियों गंगा-यमुना इत्यादि में खड़े होकर सूर्य की पूजा भी करते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है साथ ही पूजा अर्चना की जाती है. मित्र सप्तमी व्रत के प्रभाव से रोगों और पापों का नाश होता है और नेत्रों को ज्योति प्राप्त होती है आंखों का कोई भी रोग इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है.

रथ आरोग्य सप्तमी -

माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी का व्रत किया जाता है. इस व्रत के विषय में कथा प्रचलित है की श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब ने भी इस व्रत को किया था जिससे उन्हें कुष्ठ जैसे रोग से मुक्ति मिली थी.