शनि से बनने वाला शश योग- पंचमहापुरुष योग

जन्म कुण्डली में शुभाशुभ योगों के प्रभव से जातक का जीवन बहुत प्रभावित होता है. जातक को मिलने वाली दशाएं और योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव उसके जीवन में निर्णायक भूमिका दिखाता है. कुछ व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है तो हम सभी के मन में एक ही प्रश्न आता है की ऎसा कैसे हुआ है आखिर वो इतना सफल कैसे हुआ, कई बार एक जैसी मेहनत करने के बावजूद कोई सफल होता है तो कोई असफल, तो इसका एक बहुत ही प्रभावशाली उत्तर यह है की उस जातक की जन्म कुण्डली में कुछ ऎसे योग बने हुए होंगे जिन्होंने उसे वह सफलता पाने में सहायता की. इसके साथ ही उस जातक के भाग्य और कर्म के आधार पर भी व्यक्ति का सुख निर्धारित हो पाता है.

इन शुभ योगों में एक योग शश योग है जिसे पंचमहापुरुषयोग में रखा जाता है. यह एक बहुत ही शुभ एवं प्रभावशाली योग होता है. इस योग में जातक को शनि की शुभता भी प्राप्त होती है और जीवन में शनि से संबंधित कार्यों में सफलता भी मिलती है. शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में आता है. साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है.

शश योग कैसे बनता है

कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो, अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है. चंद्र कुण्डली बनाने पर अगर शनि केन्द्र स्थानों पर स्थित हो तो इस योग का निर्माण होगा.

शश योग में जन्मा जातक

शश योग को शश योग के नाम से भी जाना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसके छोटे-छोटे दांत होते हैं. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है. वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है. शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है.

ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है. धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है. माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है. सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है.

शश योग फल

शश योग जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की स्थिति को बेहतर और शुभफल देने में सहायक बनाने वाला होता है. शनि से मिलने वाले बुरे प्रभावों को कम करने में यह योग बहुत अधिक सहायक बनता है.

  • शनि की साढे़साती और शनि ढैय्या के दुष्प्रभाव कम होते हैं.
  • शनि के प्रभाव से जातक अपने कार्य क्षेत्र में मेहनती बनता है.
  • थोड़े से परिश्रम द्वारा वह भरपूर सफलता पाता है.
  • शश योग के लाभ

  • शश योग के प्रभाव से जातक को रोग इत्यादि में स्वास्थ्य लाभ जल्दी मिलता है.
  • जातक की आयु लंबी होती है.
  • जातक के स्वभाव में व्यवहारिकता दिखाई देती है.
  • खामोश और गंभीर रह कर काम करने वाला होता है.
  • चीजों को लेकर गंभीरता से उन पर अध्य्यन करके उनके रहस्यों को जानने में सफल होता है.
  • राजनीति के क्षेत्र में फलता और ऊंचाइयां पाता है.
  • शश योग में जन्मे जातक का कैरियर

  • शश योग में जन्मा जातक कानूनी दावपेचों का जानकार होने के कारण एक अच्छा वकील बन सकता है.
  • सरकारी क्षेत्र में कमाई और लाभ मिलता है.
  • शश योग वाले जातक के लिए जमीन से जुड़े कामों में भी सफलता मिल सकती है.
  • शश योग वाले जातक बड़े सरकारी अफसर, वकील इत्यादि बन सकते हैं.
  • शश योग में जन्मा जातक आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े कामों में भी प्रयासशील रह सकता है.
  • किसी गुरु की भूमिका में या फिर सलाहकार एवं कथाकार भी बन सकता है.
  • व्यक्ति आर्थिक क्षेत्र में बेहतर धन संपदा भी पाता है.
  • शश योग जातक को कब और कैसे देता है फल

    किसी भी योग की शुभता इस बात पर निर्भर करती है की उस योग में कोई कमी हो जैसे की उस योग का प्रभाव कुण्डली में उसके साथ बैठे की पाप ग्रह के कारण खराब हो रहा है. पाप ग्रह के साथ दृष्टि में युति में होने पर अपने फल को नहीं दे पाता है. इस योग की शुभता कुण्डली में शनि ग्रह के शुभ होने पर ही आवश्यक होती है.

    शनि पर किसी नीच ग्रह की दृष्टि होने पर इस योग का शुभ फल नहीं मिलता है. है तो इस योग का शुभ फल मिलने की बजाय अशुभ फल मिलने लगता है. अगर शनि की स्थिति लग्न में अशुभ हो तो जातक मानसिक और शारीरिक रुप से रोगी हो सकता है. चतुर्थ स्थान पर अगर शनि अशुभ प्रभाव में हो तो घरेलू और जीवन का आत्मिक सुख मिलने में कमी बनी रहती है. अगर सातवें भाव में शनि अशुभ प्रभाव में होगा तो विवाह सुख को खराब करेगा. व्यक्ति किसी के साथ साझेदारी सही तरीके से नही कर पाएगा. दशम स्थान में खराब प्रभाव हो तो काम काज में सफल होने के लिए संघर्ष अधिक होता है और गलत चीजों में कैरियर बना सकता है.

    अगर कुण्डली में शनि शुभ अवस्था में है और उसके साथ शुभ ग्रहों की युति व दृष्टि है, तो ऎसी स्थिति में जब शनि की दशा मिले तो यह योग बहुत अधिक शुभफल देने में सहायक बनता है.