नारद ऋषि का ज्योतिष में योगदान

ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस पुराण का अध्ययन करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है.

नारद जी को ज्योतिष का ज्ञान ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था. उनसे फिर ये ज्ञान अन्य ऋषियों के पास पहुंचता है. नारद पुराण में इस बात के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं और यह पुराण ज्योतिष से संबंधित बहुत सी जानकारी भी देता है.

नारद पुराण वास्तु ग्रन्थ

वेदों के सभी प्रमुख छ: अंगों का वर्णन नारद पुराण में किया गया है. नारद पुराण में घर के वास्तु संबन्धी नियम दिए गये है. दिशाओं में वर्ग और वर्गेश का विस्तृत उल्लेख किया गया है. घर के धन ऋण, आय नक्षत्र, और वार और अंश साधन का ज्ञान दिया गया है.

नारद पुराण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष ग्रन्थ है. यह माना जाता है, कि इस पुराण की रचना स्वयं ऋषि नारद के मुख से हुई है. यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है, इसके पहले भाग में चार अध्याय हैं, जिसमें की विषयों का वर्णण किया गया है. शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा में कर्मकाण्ड विधियां व अनुष्ठानों की विधि दी गई है. दूसरे भाग में विशेष रुप से कथाएं दी गई है. अठारह पुराणों की सूची इस पुराण में दी गई है.

नारद ज्योतिष योगदान

नारद जी के द्वारा लिखे गये पुराण में ज्योतिष की गणित गणनाएं, सिद्धान्त भाव, होरा स्कंध, ग्रह, नक्षत्र फल, ग्रह गति आदि का उल्लेख है.

नारद पुराण में कुछ व्याख्याएं ज्योतिष के सुत्रों पर भी मिलती हैं. वेद के अंग - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष का उल्लेख भी इस में मिलता है.

शिक्षा -

इस में मन्त्रों के उच्चारण और उनकी वर्तनी कैसी हो इस पर विचार किया गया है. इसके अलावा किस मंत्र का किस देवता से संबंध है इस विषय में भी विस्तार पूर्वक बताया गया है.

कल्प -

इस में यज्ञ और हवन कैसे किया जाए और इनसे क्या फायदा मिलता है इस बात पर चर्चा मिलती है. इसी के साथ ब्रह्मा जी ओर देवताओं के दोनों की गणना भी की गई है.

व्याकरण-

इस में व्याकरण के बारे में चर्चा की गई है. शब्द के रूप और उसकी सिद्धि इत्यादि का वर्णन इसमें मिलता है.

निरुक्ति -

इसके अन्तर्गत शब्दों की उत्पत्ति और उनके सिद्धांत के बारे में चर्चा की गई है.

ज्योतिष -

ज्योतिष के अन्तर्गत गणित अर्थात् सिद्धान्त भाग, जातक अर्थात होरा स्कंध अथवा ग्रह - नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य आदि के बारे में जानकारी मिलती है.

छंद -

इसमें वेद में दिए गए छंदों का विवेचन मिलता है. छंद की महत्ता इसी के द्वारा पुष्ट होती है क्योंकि वेदों में दी हुई ऋचाओं का पाठ इन छंदों के बिना संभव ही नहीं है.

वास्तु शास्त्र से संबंधित नियम

नारद पुराण के संहिता स्कन्ध में वास्तुशास्त्र से संबंधित नियमों और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाल गया है. वास्तु शात्र से जुडी़ कुछ बातें इस प्रकार हैं -

  • जहां घर बनाना हो उस जमीन की उचित प्रकार से जांच कर लेना उपयुक्त होता है.
  • घर बनाने की जमीन को जांचने का एक नियम इस प्रकार है कि जिस स्थान पर घर बनाना होता है वहां जमीन को कोहनी से कनिष्ठा अंगुली तक के बराबर खोद कर कुण्ड बनाएं और फिर उसे उसी मिट्टी से भरें अगर मिट्टी बच जाती है तो यह शुभ संकेत देती है.
  • अगर मिट्टी भरने पर कुछ भी अंश नहीं बचे और उस पर उसे भरने के लिए अलग से मिट्टी की आवश्यकता हो तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी गई है.
  • यदि मिट्टी जितनी निकाली गई थी उतनी ही अच्छे से उस कुंड में समा जाए तो यह स्थिति सामान्य मानी गई है.
  • घर बनाने के लिए मार्गशीर्ष , फाल्गुन, माघ, श्रावण और कार्तिक माह अच्छे कहे गए हैं.
  • घर पर कांटेदार पौधे या वृक्ष नहीं होने चाहिए.
  • नए घर के निर्माण के बाद उस घर में प्रवेश के समय पूजा पाठ इत्यादि करवाने का नियम भी बताया गया है.
  • ग्रहों का वर्णन

    नारद जी ने ग्रहों और उनके प्रभाव का भी वर्णन किया है. भगवान विष्णु, श्री गणेश और हनुमान जी की पूजा विधियों को भी उन्होंने बताया है. धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में, भक्ति के महत्व के विषय में, मंत्र विज्ञान, ऋतुओं और बारह माह के व्रत नियम इत्यादि के विषय में भी विस्तार पुर्वक बताया है.