ब्रह्मगुप्त ज्योतिषाचार्य का ज्योतिष में योगदान

ब्रह्मगुप्त का नाम भारत के महान गणितज्ञों में लिया जाता है. इनके द्वारा दिए गए सूत्रों को आज भी उपयोग में लाया जाता है. ब्रह्म गुप्त न केवल गणित के जानकार थे बल्कि वे एक बहुत योग्य ज्योतिषी भी थे. उन्हों ने अपने ग्रंथों में गणित और ज्योतिष के समन्वय को भी दिखाया और ज्योतिष को एक बहुत ही महत्वपूर्ण आधार एवं सार्थक सत्य का परिचय भी दिया.

ब्रह्मगुप्त का का समय काल 598 ई. पूर्व का बताया जाता है. इनके विषय में उल्लेखनीय है की ये उज्जैन में स्थिति खगोल प्रयोगशाला में एक प्रमुख पद पर आसीन रहे थे. ब्रह्म गुप्त के द्वारा रचित ज्योतिष और गणित के कई नियमों को भास्कराचार्य, ने अपने सिद्धांत के लिए उपयोग किया किया ओर उनके विचरओं और सूत्रों की बहुत प्रशंसा भी की.

भारतीय प्राचीन इतिहास में मध्यकालीन यात्री अलबरूनी ने भी अपने लेखों में ब्रह्मगुप्त का उल्लेख किया है.

ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित रचनाएं

ब्रह्मागुप्ता "ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त" व खण्डखाद्यक नाम के दो ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की. यह माना जाता है, कि जिस समय इन ग्रन्थों की रचना हुई उस समय बौद्ध धर्मालम्बियों व सनातनधर्मियों में आपस में मतभेद रहा करते थे.

इन विवादों को बढाने के लिए किसी बौद्ध शास्त्री ने लवणमुष्टि नाम के एक ग्रन्थ की रचना कि. इस शास्त्र ने उस विवाद को भटकाने में आग में घी के समान कार्य किया.

ऎसे में ब्रह्मागुप्ता जी ने ज्योतिष का एक शास्त्र लिखा और जिसका नाम इन्होने खण्डखाद्यक रखा. इस ग्रन्थ को लोगों में मिठास बांटने वाला कहा गया. ब्रह्मागुप्ता ने ज्योतष के शास्त्रों के अलावा बीजगणित के कई नियमों का आविष्कार किया. अपने समय में ये एक प्रसिद्ध गणित शास्त्री के रुप में सामने आयें. इनके द्वारा लिखे गए, शास्त्र अरब देशों में असिन्द हिन्द और खण्डखाद्यक के नाम से प्रसिद्ध हुए.

ज्योतिषाचार्य ब्रह्मागुप्ता जी ने पृ्थ्वी को स्थिर माना है तथा ये आर्यभटट के पृथ्वी चलन के सिद्धान्त का विरोध करते रहें. ब्रह्मागुप्ता जी के द्वारा लिखा गया खण्डखाद्यक शास्त्र करण ज्योतिष नियमों का उल्लेख करता है.

ब्रह्मगुप्त और उनके सूत्र

ब्रह्मगुप्त ने ज्योतिष में कई प्रयोग किए और वैदिक गणित में अपना योगदान भी दिया. उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में ग्रहों की गणना और नक्षत्रों पर विचार और ज्योतिष में बनने वाले अनेक योग इत्यादि भी बताए.

ब्रह्मगुप्त ने धर्म ओर कर्मकाण्ड की विचारधारा से खुद को बहुत अलग नहीं किया. ग्रहण से संबंधित जब वह अपने धार्मिक विचारों को रखते हैं तो अल्बुरुनी ने इसका विरोध करते हुए लिए की - “ अगर धार्मिक कर्म काण्डों को ही मानना है तो क्यों चंद्रमा के सूर्य को ग्रहण लगाने की व्याख्या करने के लिए पृथ्वी की छाया के व्यास की गणना क्यों करते हो”. ऎसे में कुछ चीजों के प्रति उनकी आलोचना भी हुई पर उनके गणितिय और ज्योतिषी सिद्धातों ने सभी के समक्ष उनकी योग्यता को प्रभावशाली ढंग से दिखाया .

  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लंका क्षेत्र में सूर्य के उत्पन्न होने से रवि के दिन में सृष्टि की उत्पत्ति का आरंभ हुआ. इसी समय से ही दिन, माह, वर्ष, युग और कल्प का आरंभ होता है. अर्थात इन सभी की उत्पत्ति का समय चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि थी.
  • सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय का मापन कैसे निकाला जाए.
  • ब्रह्मगुप्त जी ने शून्य के बारे में अपने विचार दिए जिसमें उन्होंने एक स्वतंत्र अंक बताया था. शून्य के उपयोग पर बात की पर 0 पर दिए गए उनके सिद्धांत में कमी रही जिसे स्वीकारा नहीं गया.
  • ब्रह्मगुप्त की रचनाओं का बाद में अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया और सिन्दहिन्द और अकरन्द नाम दिया गया.
  • ब्रह्मगुप्त ने त्रिभुज तथा चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र दिया.
  • चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएँ और उनके कर्णों की लम्बाई कैसे जानें यह भी बताया.
  • पृथ्वी की परिधि ज्ञात करने का नियम दिया जो आधुनिक मान के निकट बैठता है.
  • विशेष :

    ब्रह्मगुप्त द्वारा बताए गए बहुत से नियमों को आने वाले आचार्यों ने अपनाया. इसमें से भास्कराचार्य ने ब्रह्मगुप्त के द्वारा बताए गए नियमों को अपने ग्रन्थ का आधार भी बनाया. इनकी रचनाओं का बाद में अरबी में अनुवाद भी हुआ उन्होंने ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुट ग्रन्थ को सिन्दहिन्द और खंड खाद्यक को अल अकरन्द नाम भी दिया.