द्वादशी तिथि

द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि. इस तिथि के दौरान सूर्य से चन्द्र का अन्तर 133° से 144° तक होता है, तो यह शुक्ल पक्ष की द्वादशी होती है और 313° से 324° की समाप्ति तक कृष्ण द्वादशी तिथि होती है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु हैं. इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी भी माना जाता है.

द्वादशी की दिशा नैऋत्य मानी गई है अत: इस दिशा की ओर किए गए कार्य शुभ फलदेने वाले बताए गए हैं.

द्वादशी तिथि वार योग

द्वादशी तिथि अगर रविवार के दिन हो, तो क्रकच तथा दग्ध योग बनते है. ये दोनों ही योग अशुभ योगों में आते है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को श्री विष्णु जी का पाठ करना चाहिए. सामान्यत: यह तिथि मध्यम स्तरीय शुभ है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ होता है.

द्वादशी तिथि में जन्मा जातक

द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति चंचल बुद्धि का होता है. उसके विचारों में अस्थिरता रहती है. इस योग के व्यक्ति की शारीरिक रचना कठोर होती है. वह व्यक्ति विदेश भ्रमण करने वाला होता है, तथा ऎसे व्यक्ति को निर्णय लेने में दुविधा का सामना करना पडता है. इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव में भावुकता का भाव पाया जाता है.

जातक मेहनती और परिश्रम करने वाला भी होता है. अपने भाग्य का निर्माता बनता है. संतान का सुख और प्रेम पाने वाला होता है. जातक को समाज और वरिष्ठ लोगों की ओर से प्रेम की प्राप्ति भी होती है. अपने कार्यों द्वारा वह लोगों के मध्य सम्मानित स्थान पाता है. जातक खाने पीने का शौकिन होता है. सुंदर और ऎश्वर्यशील होता है.

द्वादशी तिथि में किए जाने वाले काम

द्वादशी इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.

द्वादशी तिथि महत्व

चन्द्र मास के अनुसार द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों में से एक है. इस तिथि में विष्टि करण होने के कारण इसे भद्रा तिथि भी कहा जाता है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु जी है. इस तिथि का विशेष नाम यशोबला है.

इस तिथि के विषय में यह मान्यता है, कि इस तिथि मे चन्द्र की कला से जो अमृत निकलता है, उसका पान पितृगण करते है.

द्वादशी तिथि पर्व

तिल द्वादशी व्रत पूजा -

माघ माह की द्वादशी तिल द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस दिन तिल से श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए पूजन संपन्न होता है. प्रात:काल सूर्य देव को तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए. इस दिन ब्राह्मण को तिलों का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि का बहुत ही महत्व है.

वत्स द्वादशी -

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी, वत्स द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. वत्स द्वादशी का व्रत एवं पूजन संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन की कामना हेतु किया जाता है. इस द्वादशी के दिन गाय व बछडे का पूजन किया जाता है.

वामन द्वादशी-

भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी वामन द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस तिथि में भगवान श्री विष्णु ने वामन का अवतार लिया था. वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार है. वामन अवतार कथा अनुसार भगवान विष्णु ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि से भिक्षा मांगते हैं और देव राक्षसों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. इस दिन प्रात:काल भक्त श्री हरि का स्मरण करते हुए नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करते हैं और वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है.

अखण्ड द्वादशी-

मार्गशीष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है. अखण्ड द्वादशी समस्त पापों का नाश करती है और सौभाग्य प्रदान करती है. इस द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति और सुखमय जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा करनी शुभदायक होती है.

गोवत्स द्वादशी -

गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनायी जाती है. इस दिन गाय व बछड़े की सेवा की जाती है. इस दिन व्यक्ति को शुद्ध मन से आचरण करते हुए भगवान श्री विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत के फल स्वरुप व्यक्ति को सुखों की प्राप्ती होती है.