रोमक सिद्वान्त- ज्योतिष का इतिहास | Romaka Siddhanta - History of Astrology

प्राचीन काल में ज्योतिष अपने सर्वोत्तम स्तर पर था. मध्य काल में इस विद्या के शास्त्रों को न संभाल पाने के कारण उस समय के सही प्रमाण हमारे पास आज पूर्ण रुप से उपलब्ध नहीं है. उस समय के के शास्त्री ग्रहों कि गति, कालों आकलन आदि करना बखूबी जानते थे. 

उस समय के गणित नियमों को सिद्धान्तों का नाम दिया गया. सिद्धान्त ज्योतिष में अनेका आचार्यों ने अनेक ग्रन्थ लिखें. इन्हीं में से कुछ शास्त्र सूर्य सिद्धान्त, पराशर सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्वान्त आदि है. इसी में से एक रोमक सिद्धान्त पर आज हम प्रकाश डालेंगें.    

रोमक सिद्धान्त क्या है. | What is Romaka Siddhanta 

यह प्राचीन् काल का गणितीय सिद्धान्त शास्त्र है. यह शास्त्र यमन ज्योतिष के नियमों पर आधारित है. यमन ज्योतिष मुख्यत: यूनान, मिश्र आदि देशों में विशेष रुप से प्रचलित था. 

रोमक सिद्धान्त शास्त्र में क्या है. | Romaka Siddhanta Scripture

रोमक सिद्वान्त में सूर्य व चन्द्र के बारे में आंकडे दिए गये है. इसके अतिरिक्त यह शास्त्र अधिक मास, क्षय मास, तिथि और क्षय तिथि का विस्तार से वर्णन् किया गया है. 

बेबीलोन के निवासी ग्रहों में पांच ग्रह देवताओं का पूजन करते थें. ये पांच ग्रह बुध, शुक्र, मंगल, गुरु  व शनि ग्रह थे. इन्हीं सभी ग्रहों की पूजा का वर्णन रोमक सिद्धान्त में भी मिलता है.  

रोमक सिद्धान्त लोमश सिद्धान्त का ही अपभ्रन्श रुप है, प्राचीन शास्त्रों में रोग देश के नागरिको के लिए रोमक शब्द प्रयुक्त किया गया है.  यह शास्त्र ज्योतिष की गणना से जुडे प्रमुख सिद्धान्त शास्त्रों में से एक है. इस सिद्धान्त का जन्म रोमण से होने के कारण इसे रोमक सिद्धान्त का नाम  दिया गया.