ऋषि पुत्र- ज्योतिष का इतिहास | Rishi Putra - History of Astrology | Rishi Putra Shakun Shastra| Aryabhatt Astrology Explanation

ऋषि गर्ग के पुत्र ऋषिपुत्र कहलायें. अपने पिता के समान ये ज्योतिष के विद्वान थे. इनके विषय में मिले ज्योतिष अवशेषों से यह ज्ञात होता है, कि इन्हें ज्योतिष पर कई शास्त्र लिखें, जिसमें से आज एक शास्त्र उपलब्ध है. इनके द्वारा लिखी गई एक ज्योतिष संहिता भी उल्लेख है. ऋषिपुत्र ज्योतिषी वराहमिहिर से बाद के काल के ज्योतिषी है. 

वराहमिहिर के समकालीन | Varahamihira Samkalin

इनके द्वारा लिखी गई रचनाओं में वराहमिहिर के ज्योतिष सिद्धान्तों का प्रभाव स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. इन्होने जो भी रचनाएं लिखी, उन सभी में वराहमिहीर के सूत्र स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. ऋषिपुत्र ने शकुन शास्त्र की रचना की है. 

ऋशिपुत्र ने पृ्थ्वी पर प्रकट होने वाली छायाओं का वर्णन किया है. इसके अतिरिक्त इनके द्वारा लिखे गये शकुन शास्त्र में आकाश में दिखाई देने वाले व विभिन्न प्रकार के शब्द-श्रवण के आधार पर भी ज्योतिष करने के सिद्धान्त इस शास्त्र में दिए गये है. 

ऋषिपुत्र शकुन शास्त्री | Rishi Putra Shakun Shastra

वर्षात्पात, देवोत्पात, रजोत्पात, उल्कोत्पात, गन्धर्वोत्पात इत्यादि अनेक उत्पातों द्वारा शुभ अशुभ का विश्लेषण इनके शास्त्र में किया गया है. 

आर्यभट्ट प्रथम

ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन  विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों के नाम उनके सिद्धान्तों की रुपरेखा सहित, इन्होने अपने शास्त्र में बताएं.  

आर्यभट्ट का जन्म 467 ईं में माना जाता है.  इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र का नाम आर्यभट्टीय नाम से है.  इसमें सूर्य, और तारों के स्थिर होने तथा पृथ्वी की गति के कारण दिन-रात का जन्म होने के विषय में कहा गया है.  इनके शास्त्र में पृ्थ्वी की कुल धूरी 4967 बताई गई है. इसके अतिरिक्त इन्होने सूर्य और चन्द्र ग्रहनों की वैज्ञानिक कारणों की व्याख्या भी आर्यभट्टीय शास्त्र में की गई है.  

आर्यभट्टी शास्त्र विशेषता | Aryabhatti Astrology Importance

इसने द्वारा लिखे गये शास्त में संख्याओं के स्थान पर क, ख, ग, का प्रयोग किया गया है. कुछ शास्त्रियों का यह मानना है, कि उनके द्वारा लिखे गए ये हिन्दी वर्ण ग्रीक के शास्त्रियों से लिए गये थें. इसके साथ ही आर्यभट्ट गणित शास्त्री भी रहें, इन्होने वर्ग, वर्गमूळ, घन, घनमूल आदि निकालना और इनके प्रयोग का सुन्दर वर्णन किया है. 

आर्यभट्टी शास्त्र व्याख्या | Aryabhatt Astrology Explanation 

इस ग्रन्थ में कुल 60 अध्याय है. तथा इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में कुल 9 हजार श्लोक है.  इतने बडे ग्रन्थ में इन्होने रहन-सहन, चर्चा, चाल और व्यक्ति की सहज स्वभाव के आधार पर ज्योतिष करने के नियम बताये है. (elcapitalino) शरीर के अंगों के आधार पर फलादेश किया गया है.

शारीरिक अंगों के आधार पर प्रश्न कर्ता के प्रश्नों का समाधान बताने में आर्यभट्ट कुशल थे. अपनी समस्या को लेकर आये प्रश्नकर्ता की समस्या का समाधान उसके द्वारा छूए गये अंग के आधार पर किया जाता है. वर्तमान में प्रयोग होने वाला शकुन शास्त्र इसी से प्रभावित है.