शुक्र ग्रह का असर जीवन में कई तरह की भिन्नताओं को दिखाने वाला होता है. शुक्र पर एक बहुत अलग लेकिन व्यावहारिक परिभाषा तब अधिक सप्ष्ट होती है जब ग्रह अपने प्रभावों को दिखाने में सक्षम होता है. शुक्र की स्थिति पर विचार देना एक बहुत ही

बुध को वैश्य वर्ग का माना गया है, अर्थात व्यापार से संबंधित ग्रह के रुप में बुध को विशेष रुप से देखा जाता है. बुध की स्थिति कुंडली में एक अच्छे वाणिज्य को दर्शाने वाली होती है. बुध एक ऎसा ग्रह है जो बिड़ पर अपना गहरा असर डालने में सक्षम

आत्मकारक ग्रह जीवन में इच्छाओं के साथ आकांक्षा को दर्शाता है. यह ग्रह मुख्य ग्रह है जिसके माध्यम से कुंडली के अन्य ग्रहों के बल का आंकलन किया जाता है. यदि आत्मकारक कमजोर या पीड़ित है, तो जीवन में गलत निर्णय अधिक हो सकते हैं. व्यक्ति अपने

शनि का प्रभाव प्रत्येक लग्न के लिए विशेष होता है. किसी लग्न में शनि बेहद खराब हैं तो किसी के लिए बेहद उत्तम होते हैं वहीं किसी के लिए सम भाव के साथ दिखाइ देते हैं. अब शनि हम पर कैसा असर डालता है वह कई बातों के आधार से समझा जाता है जिसका एक

मंगल और केतु यह दोनों ही ग्रह काफी क्रूर माने जाते हैं. इन दोनों का असर जब एक साथ कुंडली में बनता है तो यह काफी गंभीर ओर नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है. इन दोनों ग्रहों की प्रकृति का स्वरुप ऎसा है की यह तोड़फोड़ की स्थिति को दिखाने

मेष लग्न के लिए शनि की महादशा का समय कार्यक्षेत्र एवं महत्वाकांक्षाओं की स्थिति को प्रभावित करने वाला होता है. मेष लग्न का स्वामी मंगल है और शनि इस लग्न के लिए दशम भाव के साथ एकादश भाव का स्वामी बनता है. अब इन दो स्थानों के स्वामित्व को पर

सूर्य की स्थिति सातवें भाव में होने को कई मायनों में विशेष बन जाता है. कुंडली का सातवां भाव कई मायनों में जीवन पर प्रेम एवं सहयोग की स्थिति को दिखाने वाला होता है. ज्योतिष के बारह भाव हैं जिन पर सूर्य अपना असर डालता है लेकिन जब वह सातवें

जीवन में रिश्तों को लेकर हर व्यक्ति काफी अधिक भावनात्मक होता है. अपने जीवन में वह रिश्तों की स्थिति को अच्छे से निभाने की हर संभव कोशिश करते हैं लेकिन कई बार असफल होते चले जाते हैं. कई बार जीवन में ऎसे भी क्षण आते हैं जब रिश्तों का बार बार

जन्म कुंडली का सातवां भाव एक शुभ भाव स्थान है. यह भाव विवाह का स्थान है, साझेदारी का भाव है. इसके द्वारा जीवन में होने वाली महत्वपूर्ण साझेदारियों को देखा जाता है. वैदिक ज्योतिष में सप्तम भाव के द्वारा व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित किया जाता

मंगल महादशा का प्रभाव मेष लग्न के लिए बेहद अच्छा माना गया है. मंगल इस लग्न का स्वामी है ओर इस लग्न वालों को जब मंगल दशा मिलती है तो उन्हें यह लग्नेश की दशा के रुप में सहायक भी बनती है. मंगल महादशा का असर मेष लग्न को कई तरह से मिलता है.

जैमिनी ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व और प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि चंद्रमा मन का कारक है और बिना दिमाग के कोई भी व्यक्ति चंद्रमा के बिना वही काम नहीं कर सकता ज्योतिष कुछ भी नहीं है. चंद्रमा के आत्मकारक होने की स्थिति को अत्यंत

छठे भाव में सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय दिलाएगा. आप अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ विलय करेंगे और सौहार्दपूर्ण तरीके से एक साथ काम करेंगे. छठे भाव में स्थित सूर्य आपको संघर्षों को सुलझाने और शत्रुओं पर विजय पाने की ओर

ज्योतिष में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है, यह हमारे स्वयं को, हमारी समग्र ऊर्जा और हमारे व्यापक अस्तित्व को व्यक्त करने के तरीके को प्रभावित करता है. जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है, तो यह सूर्य नहीं है जो शारीरिक रूप से गतिमान

सूर्य का चतुर्थ भाव में होना, मिले-जुले फल मिलते हैं जिसमें आप को भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति तो होती है . साथ में जिम्मेदारियों को भी आप अवश्य पाते हैं. चतुर्थ भाव में सूर्य व्यक्ति को अपने परिवार से जुड़ा हुआ पाता है लेकिन परिवार के

ज्योतिष के अनुसार शुक्र और शनि की युति सभी लाभ देती है और यह युति अनुकूल मानी जाती है. शुक्र और शनि की युति के मध्य में कुछ द्वंद भी देखने को मिल सकता है. यहां विचारों एवं इनकी ऊर्जाओं में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है. यह दोनों ग्रह के

तीसरे भाव में सूर्य का होना प्रबलता का सूचक होता है यह सुखद स्थिति कहीं जा सकती है. एक नियम के रूप में, तीसरे भाव में सूर्य वाले लोग बहिर्मुखी होते हैं, लेकिन इनका अंतर्मन इतना प्रबल होता है की इनके भीतर को जान पाना मुश्किल होता है फिर

सूर्य की स्थिति का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में बेहद उपयोगी माना गया है. जन्म कुंडली में दूसरे भाव का प्रभाव और यहां सूर्य की स्थिति का होना बहुत अच्छे प्रभाव देने वाला होता है. जन्म कुंडली के दूसरे भाव का सूर्य नेतृत्व करवाने के लिए बहुत

सूर्य जब पहले भाव में होता है तो यह एक अत्यंत विशिष्ट स्थान और असर के लिए जाना जाता है. लग्न में सूर्य का होना व्यक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थिति होती है. लग्न एक ऎसा स्थान है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है. यह जीवन के हर अच्छे

कुंडली में धनयोग कई तरह से बनता है लेकिन जब बात आती है राहु की तो इसके कारण जब धन योग बनता है, तो उसके मायने काफी अलग दिखाई देते हैं. राहु के साथ गुरु की स्थिति को भी इस योग में देखा जाता है. राहु के साथ गुरु का योग ही बनाता है अष्ट

सूर्य ग्रह आत्मा का प्रतीक है और शुक्र सौंदर्य एवं भोग का. इन दोनों ग्रहों का संबंध जीवन के कई पड़ावों पर अपना असर दिखाता है. एक अग्नि तत्व ग्रह है और दूसरा जल तत्व से भरपूर अब इन का प्रभाव एक साथ होता है तो उसके कारण विरोधाभास उत्पन्न