वैशाखी पर्व "खालसा पंथ का स्थापना दिवस" (Vaisakhi Festival- "Foundation day of Khalsa Panth")

vaisakhi khalsa खेतों में जब फसल पक कर तैयार होने पर किसान खुशी से झूम उठता है. इसी खुशी में वैशाखी का पर्व मनाया जाता है. खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृ्द्धि की कामना करते हुए लोग इस दिन पूजा- अर्चना, दान -पुण्य़ व दीप जलाकर वैशाखी पर अपनी खुशी का इजहार करते है. वास्तव में इस दिन जो भांगडा -नृ्त्य होता है, उसके पीछे यही भाव होता है कि सालभर की कडी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रुप में धरती मां से उन्हें प्राप्त हुआ है. उसका स्वागत यहां के लोग खुशी मना कर करते है. देखा जाये तो यह नई फसल की कटाई का उत्सव है.


एक ओर यह पर्व जहां कृषि और किसानों से जुडा हुआ है. वही दूसरी ओर यह "खालसा पंथ" की स्थापना का भी दिन होने के कारण इस पर्व की महत्वता ओर भी बढ जाती है. यह दिन एक साथ अनेक खुशियां लेकर आता है. वैशाखी नववर्ष के आगमन का दिन है. सिख पंथ की स्थापना का दिन होने के कारण इसका अपना एक गौरवशाली इतिहास है.


इतिहास के झरोखे से वैशाख मास

वैशाख मास के पर्व न होकर, पर्वों का समूह है. सिक्खों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म इसी माह में हुआ था. पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना इसी दिन की थी. महाराजा विक्रमादित्य के द्वारा श्री विक्रमी संवत का शुभारंभ इसी दिन से हुआ था. भगवान श्री राम का राज्यभिषेक इसी दिन हुआ था. नवरात्रों का प्रारम्भ, सिंध प्रातं के समाज संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि कई महत्वपूर्ण घटनाएं इस माह से जुडी हुई है.


वैशाखी पर "खालसा पंथ की नींव"

"खालसा" का शाब्दिक अर्थ शुद्ध, पवित्र है. सिक्खों के दंसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह ने आज ही के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस पंथ की स्थापना करने का उनका लक्ष्य तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करना था. समाज से उंच-नीच की भावना को समाप्त करने के लिये भी वैशाखी के पवित्र दिन श्री गुरु गोविन्द ने "पंच प्यारे" नाम से उपाधि दी है.


ये पंच प्यारे अलग- अलग जाति के थे, जिन्हें अमृ्त पिलाया और इनके हाथों सें स्वयं अमृ्त पीकर सिंह नामक उपाधि प्राप्त की. इस प्रकार इस दिन से ही गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्ख धर्म के साथ ही पूरे मानव समाज की धार्मिक, समाजिक विचारधारा को एक नया रुप रुप दिया. इस दिन गुरुद्वारों में विशेषकर आनंदपुर साहिब में अरदास, शबद कीर्तन सहित कडा प्रसाद वितरण, लंगर आदि का आयोजन किया जाता है.


खालसा पंथ के महत्व को समझने के लिये हमें 13 अप्रैल, 1699 के इतिहास में वापस जाना पडेगा. इस दिन श्री आनंदपुर साहिब में वैशाखी के दिन गुरु के कहे अनुसार दीवान सजाया गया था. सारा सिक्ख समाज यहां एकत्रित हुआ था. उसी समय खिक्खों के दंसवे गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह ने उठकर कहा कि धर्म और मानवता की रक्षा के लिये पांच शीश मांगें. यह सुन एकत्रित जन स्तब्ध रह गये.


उस भीड में से एक सिक्ख साहस करके उठा और कहा कि अपने धर्म की रक्षा के लिये मैं शीश देने के लिये तैयार हूं. इस सिख पुरुष का नाम था, दया राम. गुरु जी दया राम को तम्बू में लेकर गये और कुछ देर बाद खूंन से सजी तलवार लेकर वापस आये. वापस आकर उन्होंने ने एक अन्य शीश की मांग की, इस प्रकार यह सिलसिला पांच बार चला. हर बार गुरु खडे होने वाले व्यक्ति को लेकर अपने तंम्बू में जाते और खूंन में सनी तलवार लेकर वापस आते.


पांचवी बार में सभी ने देखा की पांचों सिख "श्री साहिब" पोशाक धारण किये हुए तम्बू से बाहर आये. दंसवे गुरु ने इन्हें "पंच प्यारे" नाम दिया और अमृ्त चखा कर उन्हें सिख के रुप में मान्यता दी. इसी दिन से गुरु जी ने सिखों के लिये केस, कंघा, कडा, कच्छ व कृ्पाण धारण करना अनिवार्य कर दिया. इस प्रकार खालसा पंथ की स्थापना की.


वैशाखी पर्व देश के अन्य राज्यों में

वैशाखी पर्व केवल सिक्ख समाज का पर्व नहीं है. अपितु इस दिन केरल, उडिसा, आसाम राज्यों में यह दिन नये वर्ष के आगमन का दिन होता है. इस दिन समाज में नये साल के आने की खुशी में संकल्प और नये कार्य प्रारम्भ किये जाते है.


मलयालम समाज के लिये "विशु" पूजन का दिवस

वैशाखी के दिन को मलयालम समाज नये साल के रुप में मनाता है. इस दिन मंदिरोम में विशुक्कणी के दर्शन कर समाज के लिये नव वर्ष का स्वागत करते है. इस दिन केरल में पारंपरिक नृ्त्य गान के साथ आतिशबाजी का आनन्द लिया जाता है. विशेष कर अय्यापा मंदिर में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है. विशु यानी भगवान "श्री कृ्ष्ण" और कणी यानी "टोकरी"


विशुक्कणी पर्व के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व पर भगवान श्री कृ्ष्ण को टोकरी में रखकर उसमें कटहल, कद्दू, पीले फूल, कांच, नारियल और अन्य चीजों से सजाया जाता है. सबसे पहले घर का मुखिया इस दिन आंखें बंद कर विशुक्कणी के दर्शन करता है. कई जगहों पर घर के मुखिया से पहले बच्चों को देव विशुक्कणी के दर्शन कराये जाते है. नव वर्ष पर सबसे पहले देव के दर्शन करने का उद्देश्य, शुभ दर्शन कर अपने पूरे वर्ष को शुभ करने से जुडा हुआ है.


असम में वैशाखी पर्व का एक नया रुप "बिहू"

वैशाखी पर्व को असमिया समाज एक नये रुप में मनाता हे. यहां यह पर्व दो दिन का होत है. वैशाखी से एक दिन पहले असम के लोग बिहू के रुप में इस पर्व को मनाते है. जिसमें मवेशियों कि पूजा की जाती है. तथा ठिक वैशाखी के दिन यहां जो पर्व मनाया जाता है, उसे रंगीली बिहू के नाम से जाना जाता है.


इस दिन असम में कई सांस्कृ्तिक आयोजन किये जाते है. क्योकि कोई भी पर्व बिना व्यंजनों के पूरा नहीं होता है. इसलिये खाने में इस दिन यहां "पोहे" के साथ दही का आनन्द लिया जाता है. असम का जीवन कृ्षि से जुडा हुआ होने के कारण लोग यह कामना करते है कि पूरे वर्ष अच्छी बारिश होती रहे.