नवरात्रि आरंभ 2022 (Navratri Begins - 2022)

navratri_puja1 आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत किया जाता है. प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प किया जाता है. वर्ष 2022 में यह व्रत 26 सितंबर से शुरु होकर 4 अक्तूबर तक रहेंगे. व्रत का संकल्प लेने के बाद पंडित से या स्वयं मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा "दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए. वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हुए इस व्रत को करते है. कहीं कहीं नवरात्रे भर रामलीलाएं भी होती है.


नवरात्रे स्तुति (Navratri Stuti)

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा हाथ जोड कर तेरे द्वार खडे।

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरे भेंट धरें ।।

सुन जगदम्बे कर न विलम्बे सन्तन की भण्डार भरे।

सन्तन प्रतिपाली सदा कुशाली जै काली कल्याणी करे।। मंगल की ....

बुद्धि विधाता तू जगमाता मेरा कारज सिद्धि करे।

चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन परे।। मंगल की ....

अब जब पीर परे भक्तन पर तब तब आय सहाय करे।

सन्तन सुखदाई सदा सहाई सन्त खडे जयकार करे।।मंगल की ....

बार-बार तैं सब जग मोह्रो तरूणी रुप अनूप घरे।

माता होकर पुत्र खिलावे कहीं भार्या भोग करे।।मंगल की ....

सन्तन सुखदाई सदा सहाई सन्त खडे जयकार करे।

सन्तन सुखदाई सदा सहाई सन्त खडे जयकार करे।।मंगल की ....

ब्रह्रा विष्णु महेश सहसफल लिये भेंट तेरे द्वार खडे।

अटल सिंहासन बैठी माता सिर सोने का छत्र फिरे।।

बार शनीचर कुंकुम वरणों जब लौ कंठ कर हुकुम करे।

खडग खप्पर त्रिशूल हाथ लिये रक्त बीज को भस्म करें।।

शुम्भ निशुम्भ को क्षण में मारे महिषासुर को पकड दले।

सन्तन सुखदाई सदा सहाई सन्त खडे जयकार करे।।मंगल की ....

आदितावार आदि को बीरा जन अपने को कष्ट हरे।।

कोप होयकर दानव मारे चण्ड मुण्ड सब चूर करे।

जब तुम देखो दया रुप होय पल में संकट दूर करे।

सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता जन की अरज कबूल करें।।

सिंह पीठ कर चढी भवानी अटल भवन में राज करें।

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे शिव शंकर जी ध्यान धरे।।

इन्द्र कृ्ष्ण तेरे करे आरती चंवर कुबेरे डुलाय रहे।

जय जननी जय मातु भवानी अटल भुवन में राज्य करे।।


नवरात्रा-देवी के नौ रुपों का पूजन (Navratri - Puja of the Nine Forms of Devi)

प्रत्येक वर्ष में दो बार नवरात्रे आते है. पहले नवरात्रे चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक चलते है. अगले नवरात्रे शारदीय नवरात्रे कहलाते है. ये नवरात्रे आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरु होकर नवमी तिथि तक रहते है. दोनों ही नवरात्रों में देवी का पूजन किया जाता है. देवी का पूजन करने की विधि दोनों ही नवरात्रों में लगभग एक समान रहती है.


आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के ठिक बाद दशहरा पर्व मनाया जाता है. नवरात्रे और दशहरा प्रत्येक वर्ष परंपरागत रुप से उत्साह और धार्मिक निष्ठा से मनाया जाता है. इन पर्वों का धार्मिक व आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार से विशेष महत्व है. नवरात्रों में माता के नौ रुपों की पूजा की जाती है. यही कारण है, कि इसे नवरात्रा के नाम से भी जाना जाता है.


नवरात्रि पूजन प्रारम्भ विधि (Method of Beginning Navratri Puja)

नवरात्रे चैत्र मास के हो, या फिर शारदीय नवरात्रे हो, दोनों ही में प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापना कि जाती है. कलश स्थापना करने से भी पहले उपवासक को नवरात्रे व्रत का संकल्प लिया जाता है. कलश से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है. इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है.


कलश स्थापना करने से पहले भूमि को गंगा जल छिडकर शुद्ध किया जाता है. भूमि शुद्ध करने के लिये गाय का गोबर भी प्रयोग किया जा सकता है. पूजा में सभी नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिशापालकों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी को आमंत्रित किया जाता है. पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है.