चैत्र नवरात्रि 2022 तिथि (Chaitra First Navaratri 2022 Dates)

nine_avatar 2 अप्रैल 2022 के दिन से नव सम्वत्सर प्रारम्भ होगा. साथ ही इस दिन से चैत्र शुक्ल पक्ष का पहला नवरात्रा होने के कारण इस दिन कलश स्थापना भी की जायेगी. नवरात्रे के नौ दिनों में माता के नौ रुपों की पूजा करने का विशेष विधि विधान है. साथ ही इन दिनों में जप-पाठ, व्रत- अनुष्ठान, यज्ञ-दानादि शुभ कार्य करने से व्यक्ति को पुन्य फलों की प्राप्ति होती है. इस वर्ष में ये नवरात्रे 2 अप्रैल से 10 अप्रैल 2022 तक रहेगें.


सर्वप्रथम श्री गणेश का पूजन (Lord Ganesha Pujan)

प्रतिपदा तिथि के दिन नवरात्रे पूजा शुरु करने से पहले कलश स्थापना जिसे घट स्थापना के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू धर्म में देवी पूजन का विशेष महात्मय है. इसमें नौ दिनों तक व्रत-उपवास कर, नवें दिन दस वर्ष की कन्याओं का पूजन और उन्हें भोजन कराया जाता है.


शुभ मुहूर्त में घट स्थापना (Ghat Sthapna in Subh muhurat)

चैत्र नवरात्रि के लिए घट स्थापना मुहूर्त प्रात:काल 05:52 से 08:31 तक का रहेगा. घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:38 से 12:28 तक होगा. सभी धार्मिक तीर्थ स्थलों में इस दिन प्रात: सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त समय में घट स्थापना की जाती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा, श्री गणेश देव की पूजा की जाती है. इस दिन मिट्टी के बर्तन में रेत-मिट्टी डालकर जौ-गेहूं आदि बीज डालकर बोने के लिये रखे जाते है.


भक्त जन इस दिन व्रत-उपवास तथा यज्ञ आदि का संकल्प लेकर माता की पूजा प्रारम्भ करते है. नवरात्रे के पहले दिन माता के शैलपुत्री रुप की पूजा की जाती है. जैसा की सर्वविदित है, माता शैलपुत्री, हिमालय राज जी पुत्री है, जिन्हें देवी पार्वती के नाम से भी जाना जाता है. नवरात्रों में माता को प्रसन्न करने के लिये उपवास रखे जाते है. तथा रात्रि में माता दुर्गा के नाम का पाठ किया जाता है. इन नौ दिनों में रात्रि में जागरण करने से भी विशेष शुभ फल प्राप्त होते है.


माता के नौ रुप (Nine Incarnation of Goddess)


नवरात्रो में माता के नौ रुपों कि पूजा की जाती है. नौ देवीयों के नाम इस प्रकार है. प्रथम-शैलपुत्री, दूसरी-ब्रह्मचारिणी, तीसरी-चन्द्रघंटा, चौथी-कुष्मांडा, पांचवी-स्कंधमाता, छठी-कात्यायिनी, सातवीं-कालरात्री, आठवीं-महागौरी, नवमीं-सिद्धिदात्री.


चैत्र पक्ष पहला नवरात्रा - घट स्थापना विधि (Chaitra Paksha First Navratri - Ghat Sthapna Procedure)

चैत्र नवरात्रा का प्रारम्भ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है. कलश को हिन्दु विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है अत: सबसे पहले कलश की स्थान की जाती है. कलश स्थापन के लिए भूमि को सिक्त यानी शुद्ध किया जाता है. भूमि की शुद्धि के लिए गाय के गोबर और गंगाजल से भूमि को लिपा जाता है. विधान के अनुसार इस स्थान पर सात प्रकार की मिट्टी को मिलाकर एक पीठ तैयार किया जाता है, अगर सात स्थान की मिट्टी नहीं उपलब्ध हो तो नदी से लायी गयी मिट्टी में गंगोट यानी गांगा नदी की मिट्टी मिलाकर इस पर कलश स्थापित किया जा सकता है.


पहले दिन माता शैलपुत्री पूजन, पहले दिन किस देवी कि पूजा करे? (Mata Shailputri Puajan - Devi Pujan on First Day of Navratri)

कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है. इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है "जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते". इसी मंत्र जाप से साधक के परिवार को सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद प्राप्त होता है.


कलश स्थापना के बाद देवी प्रतिमा स्थापित करना (Goddess Statue Establishment)

कलश स्थापना के बाद देवी प्रतिमा स्थापित करना देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है.


चुंकि भगवान शंकर की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. अत: भगवान भोले नाथ की भी पूजा भी की जाती है. प्रथम पूजा के दिन "शैलपुत्री" के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है. इस प्रकार दुर्गा पूजा की शुरूआत हो जाती है प्रतिदिन संध्या काल में देवी की आरती होती है. आरती में "जग जननी जय जय" और "जय अम्बे गौरी" के गीत भक्त जन गाते हैं.


नवरात्रों में किस दिन करें किस ग्रह की शान्ति (Navratri : Grah Shanti)

नवरात्र में नवग्रह शांति की विधि:-


यह है कि प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति करानी चाहिए.

द्वितीय के दिन राहु ग्रह की शान्ति करने संबन्धी कार्य करने चाहिए.

तृतीया के दिन बृहस्पति ग्रह की शान्ति कार्य करना चाहिए.

चतुर्थी के दिन व्यक्ति शनि शान्ति के उपाय कर स्वयं को शनि के अशुभ प्रभाव से बचा सकता है.

पंचमी के दिन बुध ग्रह,

षष्ठी के दिन केतु

सप्तमी के दिन शुक्र

अष्टमी के दिन सूर्य

एवं नवमी के दिन चन्द्रमा की शांति कार्य किए जाते है.


किसी भी ग्रह शांति की प्रक्रिया शुरू करने से पहले कलश स्थापना और दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद लाल वस्त्र पर नव ग्रह यंत्र बनावाया जाता है. इसके बाद नवग्रह बीज मंत्र से इसकी पूजा करें फिर नवग्रह शांति का संकल्प करें.


प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति होती है इसलिए मंगल ग्रह की फिर से पूजा करनी चाहिए. पूजा के बाद पंचमुखी रूद्राक्ष, मूंगा अथवा लाल अकीक की माला से 108 मंगल बीज मंत्र का जप करना चाहिए. जप के बाद मंगल कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करना चाहिए. राहू की शांति के लिए द्वितीया को राहु की पूजा के बाद राहू के बीज मंत्र का 108 बार जप करना, राहू के शुभ फलों में वृ्द्धि करता है.


नवरात्रों में किस देव की पूजा करें. (God to be worshipped in Navratri)

नवरात्र में मां दुर्गा के साथ-साथ भगवान श्रीराम व हनुमान की अराधना भी फलदायी बताई गई है. सुंदरकाण्ड, रामचरित मानस और अखण्ड रामायण से साधक को लाभ होता है. शत्रु बाधा दूर होती है. मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. नवरात्र में विघि विधान से मां का पूजन करने से कार्य सिद्ध होते हैं और चित्त को शांति मिलती है.