भगवान शिव का व्यक्तित्व (Character of Lord Shiva)

lord_shiva हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है. भगवान शिव हिन्दु देवताओं के प्रमुख देव हैं. शिव को संहारक, महेश, भोलेनाथ, रुद्र अनेकों नाम से पुकारा जाता है. ब्रह्माजी सृष्टि के निर्माता हैं तो विष्णुजी पालन-पोषण करने वाले हैं. शिव भगवान संहार करने का कार्य करते हैं, इस कारण उन्हें संहारक भी कहा जाता है. भगवान शिव देवताओं के भी देव है इसीलिए उन्हें महेश अर्थात महा+ईश कहा गया है.


भगवान शिव अपने भक्तों की जरा सी भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं तो भोलेनाथ कहलाने लगे. भगवान शिव के रौद्र रुप के कारण उन्हें रुद्र के नाम से भी पुकारा जाने लगा. भगवान शिव के रुद्र नाम का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. ऋग्वेद में शिवजी को तीन भजन समर्पित किए गए हैं. भोलेनाथ व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं. भोलेनाथ की अर्धांगिनी का नाम पार्वती है इन्हें शक्ति भी कहा गया है. इनके पुत्रों का नाम कार्तिकेय तथा गणेश है.


भगवान शिव योगी के रुप में वास करते हैं. शिव अन्य देवों से भिन्न हैं. शिव अपने रौद्र रुप तथा सौम्य आकृति दोनों के लिए विख्यात हैं. यह सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार के अधिपति देवता हैं. सृष्टि की लय और प्रलय दोनों ही भगवान शिव के अधीन हैं. इनकी लीला अदभुत है. इनमें सभी भावों का परस्पर तालमेल दिखाई देता है. इनके मस्तक पर एक ओर चन्द्रमा विराजमान है तो दूसरी ओर साँप उनके गले का हार बनकर झूल रहा है.


यह योगी भी हैं और गृहस्थ जीवन में भी लीन हैं. स्वभाव में सौम्यता होते हुए भी भयंकर रौद्र रुप भी इनमें विद्यमान है. यह अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित कहलाते हैं. इनके परिवार में भूत-प्रेत, साँप, छछूंदर, सिंह, नन्दी, मूषक, मोर आदि सभी शामिल है. सभी को यह सम दृष्टि से देखते हैं. इन्हें महाकाल भी कहा गया है. महाकाल की आराधना करने का महापर्व "महाशिवरात्रि" कहलाता है.


जो व्यक्ति शिव को प्रसन्न करना चाहते है और उनकी शरण में जाना चाहते हैं उन्हें "महाशिवरात्रि" का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिवरात्रि का व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. शिवरात्रि के व्रत तथा पूजन के पश्चात व्रत का पारण चतुर्दशी में किया जाता है. ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.


महाशिवरात्रि पूजन (Maha Shivaratri Puja)

फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर पूरा दिन भगवान शिव की आराधना भक्तजनों द्वारा की जाती है. जगह-जगह शिवालयों में भक्तों का ताँता सुबह से रात भर तक लगा रहता है. भगवान शिव की पूजा महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के चारों प्रहर तक करनी चाहिए.


शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है. इस महामंत्र का 108 बार जाप करने से प्राणी के सभी दु:खों का नाश होता है. मंत्र है :- "ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात"


शिव पूजन का महत्व (Importance of Shiva Puja)

भगवान शिव की उपासना करने वाले प्राणियों को शिवरात्रि के दिन भुक्ति तथा मुक्ति दोनों ही की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव अर्धरात्रि में लिंगरुप में प्रकट हुए थे. मंगल ग्रह का संबंध भगवान शिव के त्रिशूल से है. गुरु ग्रह का संबंध भगवान शिव के डमरु की ध्वनि से है. चन्द्र ग्रह शिवजी के माथे पर विराजमान होकर अपनी आभा से जटाधारी शिव को प्रसन्न रखते हैं. कुण्डली में सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र, शिव तथा शक्ति के सम्मिलित प्रयास से जीव सृष्टि का कारण बनता है. बाकी बचे सभी बुधादि ग्रह समभाव रखने में सहायक होते हैं. इन सभी कारणों से शिव पूजन का अत्यधिक महत्व होता है.


भगवान शिव के नाम (Different Names of Lord Shiva)

हिन्दुओं द्वारा भगवान शिव को अनेकों नामों से पुकारा जाता है. सभी नामों का अपना महत्व है. भगवान शिव के नाम हैं :-


रुद्र - इसका अर्थ है जो दु:खों का निर्माण तथा नाश दोनों ही करता है.

पशुपतिनाथ - इसका अर्थ है भगवान शिव पशु तथा पक्षियों और जीवात्माओं के स्वामी हैं.

अर्धनारीश्वर - भगवान शिव का यह नाम शिव तथा शक्ति के मिलने से प्रचलित हुआ.

महादेव - इसका अर्थ है ईश्वर की महान शक्ति.

भोले - भगवान शिव का ह्रदय कोमल है. वह दयालु हैं तथा बहुत जल्द प्रसन्न होकर सभी को क्षमा कर देते हैं. इसलिए इन्हें भोले कहा गया है.

लिंगम - इसका अर्थ रोशनी की लौ है तथा यह शब्द समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है.

नटराज - इसका अर्थ है नृत्य के देवता. भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी हैं इसलिए इन्हें नटराज भी कहा जाता है. नट अर्थात नाचने वाला.