मां दुर्गा के नौ रुप (The Nine Forms of Goddess Durga)

navadurga1 ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने देवी शक्ति के प्रताप की व्याख्या इस प्रकार की है-

मृदा बिना कुलालश्च कतुं यथाक्षम:।

स्वर्ण बिना स्वर्णकार: कुण्डलं कर्तुमक्षम:।

शक्त्या बिना तथाहं च स्वसृ्ष्टि कर्तुमक्षम:।।


अर्थात "जैसे मिट्टी बिना कुम्हार घडा, स्वर्ण, बिना सुनार, कुण्डल नहीं बना सकता, वैसे ही मैं शक्ति बिना सृ्ष्टि रचना नहीं कर सकते है."


शक्तिं बिना बुद्धिमन्तो न जगद्रक्षितुं क्षमा:

शक्त्यालयास्तद्वदहं शाक्तियुत: क्षमा:।।


अर्थात "जैसे-बुद्धिमान भी शक्ति बिना जगत की रक्षा नहीं कर सकते, वैसे ही मैं शक्ति बिना जगत कि रक्षा, पालन करने में असमर्थ हूं।"


यह शक्ति दुर्गा, शिवा, पराम्बा,है जो ब्रह्मा, विष्णु, शिव में निवास करके उन्हें अपने कर्म -कर्तव्य पालन के योग्य बनाती है. देवी शक्ति के नौ रुप इस प्रकार कहें गये है:


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी।

तृ्तीयं चन्द्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तितता।


नौ दुर्गाएं नवधा शक्ति की प्रतीक है, इनके नौ रुपों की उपासना, आराधना, नवरात्रों में की जाती है. ये देवियां दृढता, ब्रह्माचर्य, जागरुकता, निष्कपटता, त्याग, ज्ञान, निर्भयता, सेवा भाव व धैर्य की प्रतीक है.


शैलपुत्री देवी (Shailaputri Devi)

पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने वाली उनकी पुत्री पार्वती, उमा का नाम "शैलपुत्री" पडा. वृ्षभस्थिता मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल है, जगत के समस्त पदार्थो, शक्तियों, जीवों का उनमें समावेश है. देवी उमा प्रकाशित करने वाली शक्ति है. प्रकृति की देवी है.


ब्रह्माचारिणी (Brahmacharini)

"ब्रह्मा" शब्द से ब्रह्माण्ड तथा तपस्या दोनों अर्थ निकलते हैं. यहां ब्रह्मा से आशय तप से है. ब्रह्मशक्ति धात्री देवी का दूसर रुप ब्रह्राचारिणी है. अर्थात तपस्याचारिणी है. वह ज्योतिर्मयी व अत्यंत भव्य है. दाहिने हाथ में जपमाला बाएं में कमण्डल है. शिव को पाने के लिये इन्होने तपस्या की और तपश्चारिणी कहलाई. पहले यह बिल्वपत्र खाती रही, फिर उसे भी छोड दिया और "अपर्णा" कहलाई.


चन्द्रघण्टा (Chandraghanda)

शास्त्रों में शक्ति की दो अवस्थाएं-जिनमें पहली है, उन्मनी है, तथा दुसरी समनी कहीं गई है. समनी को 16 कलाओं से युक्त कहा गया है. इसका संबन्ध ब्रह्मा शक्ति से कहा गया है. देवी चन्द्रघन्टा के मस्तक में घण्टे के आकार का अर्द्ध चक्र है. इसी कारण इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है. यह देवी लावण्यमयी दिव्य देवी है. इनका शरीर स्वर्ण वर्ण का है. इसकी दस भुजाएं है, जिनमें विविध शास्त्र है. ये सिंहवाहिनी है. तथा युद्ध के लिये सदैव तैयार रहती है. इनके घण्टे के भयानक ध्वनी से सभी प्रकंपित रहते है. ये सर्वश्रेष्ठ विधाओं की देवी कही गई है.


कूष्माण्डा (Kushmanda)

आरोग्यता की अधिष्ठात्री देवी कुष्माण्डा चौथी देवी है. ये देवी सृ्ष्टि की आद्धशक्ति, ब्रह्मशक्ति है. इनके हंसने से ब्रह्माण्ड की उत्पति होती है. अपनी मन्द मुस्कान के कारण ही इसे ब्रह्राण्ड को उत्पन्न करने वाली कहा गया है. इसी कारण इन्हें कुष्मान्डा कहा गया है. इसी कारण इन्हें कुष्माण्डा कहा गया है.


देवी कूष्माण्डा की आठ भुजाएं है, सात में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल,पुष्प, अमृ्तपूर्ण कलश, चक्र, गदा धारण करती है. आंठवें में सिद्धि निधि जपमाला है. यह देवी सिंहवाहिनी है, ऋतु-परिवर्तन करने वाली है. तथा स्वयं प्रकृ्ति के केन्द्र में है. इनकी निधि औषधियां, जडी-बूटियां आदि है.


स्कन्दमाता (Skandamata)

देवी स्कन्दमाता, शिवपुत्र कार्तिकेय की माता है. यह पांचवी शक्ति है. इनकी चार भुजाएं है. दाहिनी दो भुजाओं में ऊफार स्कन्द को पकडे हैं, नी़ए कमलपुष्प है. बाई भुजाओं में ऊपरी वरदमुद्रा में है. नीचे वाले में कमलपुष्प है. यह कमलासना हैं, शुभ्रवर्णा है, पर सिंह वाहिनी है.


कात्यायनी (Kartyayani)

महर्षि कत के पुत्र ऋषि काव्य के गौत्र में महर्षि कात्यायन जन्में, जिन्होने पराम्बा की उपासना कर वरदान में उन्हें पुत्री रुप में पाया था. यही देवी कात्यायनी कहलाई. यद्वपि व अजन्मा है. तथापि छठे स्वरुप में वह जन्म लेती है. आश्चिन कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्दशी को जन्म लेकर वह नवमी तक देवी ने ऋषि कात्यायन से पूजन व सत्कार ग्रहण किया. वह मन की शक्ति तथा क्रियात्मक शक्ति है. सोने के समान इनका दिव्य रुप है. तीन नेत्रों तथा आठ भुजाओं वाली सिंहवाहिनी कात्यायनी सौम्या रुपा है.


कालरात्रि (kalratri)

कृष्णवर्णा देवी कालरात्रि नवदुर्गा की सांतवी मूर्ति है. जिनके सिर के केश बिखरे है. गले में विधुत समान चमकीली माला है. तीन नेत्र है जो ब्रह्माण्ड के समान गोल है. जिनसे चमकीली किरणे निकल रही है. नाक से आग की भयंकर ज्वाला निकलती है. यह देवी गर्दभ वाहिनी है. ऊपर उठा दाहिना हाथ वर मुद्रा में है.


नीचे अभयमुद्रा में है. बाई और की भुजा में ऊपर कोटा, नीचे खडग है. देखने में भयंकर किन्तु शुभफल देने वाली है. इसी कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. यह देवी काल को जीतने वाली काली है. रुद्रशिव की महाशक्ति है. तमोगुण की निवृति ही जिनकी बली है. इनके गले में नरमुण्ड 51 बीजाक्षर है.


महागौरी (Mahagauri)

पूर्णतया गौर वर्णा महागौरी आंठवी शक्ति है, जिनकी गोरता की उपमा शंख, चन्द्रमा तथा कुंदपुष्प से की गई है. चार भुजधारी, वृ्षभवाहिनी महागौरी के समस्त वस्त्राभूषण श्वेत है. दाईं भुजा में ऊपर डमरू है. नीचे वरमुद्रा वाला हाथ वरमुद्रा में है. इनकी अवस्था आठ वर्ष की है. यह शांतमुद्रा में रहती है. यही देवी शाकुम्भरी है, शताक्षी है, त्रिनेत्री है, दुर्गा, चण्डी, रक्तबीज संहारिनी है. यही त्रिशक्ति है. कभी गौरवर्णा है, तो कभी कृ्ष्णवर्णा है. इन्होने नाना रुप धारण कियें. दुर्गम दानव को मारने के कारण ये दुर्गा कहलाई है.


सिद्धिदात्री (Siddhidatri)

समस्त 18 सिद्धियों को देने वाली चतुर्भुजी सिंहवाहिनी, कमलपुष्पसीन नौवी शक्ति है, सिद्धिदात्री, जो गदा, चक्र, शंख, कमलपुष्प धारण करती है. विष्णुप्रिया है, वैष्णवी शक्ति है, यह कमला कही जाती है, धन-धान्य की प्रतीक है, मधु-कैटभ संहारिणी है. यह सुंदर वर्ण की है, दसभुजाओं वाली है, अस्त्र-शस्त्र धारिणी अनेक रुपों वाली है.