बंगाल दूर्गा पूजा (Durga Puja of Bengal)

durga_puja_bengal1"सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते.." इस मंत्र के साथ दुर्गा पूजा प्रारम्भ होती है. दुर्गा पूजा का पर्व श्रद्वा व विश्वास का पर्व है. आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष के साथ ही दुर्गा अष्टमी की धूमधाम शुरु हो जाती है.


दुर्गा पूजा षष्ठी से दशमी तक का सफर (मूर्ति स्थापना से मूर्ति विसर्जन कि यात्रा) (Durga Puja - The Rituals from Shashthi to Dashmi)

षष्ठी के दिन मां दुर्गा कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इसके साथ ही दुर्गापूजा की शुरुआत होती है. इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है. इसकी अगली तिथि, सप्तमी तिथि के दिन दुर्गा के पुत्र गणेश और उनकी पत्नी की विशेष पूजा की जाती है.


श्री गणेश की पत्नी के रुप में एक केले के स्तंभ को लाल बार्डर वाली नई सफेद साडी से सजाकर उसे उनकी पत्नी का रुप दिया जाता है. इसके साथ ही दुर्गा पूजा के अवसर पर एक हवन कुंड बनाया जाता है. जिसमें धान, केला, आम, पीपल, अशोक, कच्चू, बेल आदि की लकडियों से हवन किया जाता है. इसी दिन महासरस्वती की पूजा 108 कमल के फूलों से की जाती है.


सप्तमी के बाद अष्टमी तिथि आती है. ऎसा माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. अष्टमी के दिन 108 कमल के फूलों से देवी कि पूजा की जाती है. संपति और सौभाग्य की प्रतीक महालक्ष्मी के रुप में देवी की पूजा संधि काल में की जाती है. यह पूजा 108 दीयों से कि जाती है. और नवमी तिथि को देवी को भोग चढाया जाता है. नवमी तिथि के दिन चंड-मुंड असुरों का विनाश करने वाली माता चांमुंडा के रुप की पूजा की जाती है.


दशमी तिथि के बाद माता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. माता के विसर्जन से जुडी एक मान्यता के अनुसार मां पांच दिनों के लिये अपने सहित अपने मायके आती है. और दशमी तिथि में विसर्जित होने के बाद कैलाश पर्वत पर लोट जाती है. विसर्जन से पहले विवाहित स्त्रियां माता कि पूजा करती है, और माथे पर सिन्दूर लगाती है. बाद में सभी लोग आपस में मिठाईयां बांटते है. और सिंदूर खेला जाता है.


दुर्गा पूजा पर मूर्ति बनाना (Making Idols During Durga Puja)

दुर्गा पूजा कब शुरु हुई, यह जानने के लिये इतिहास के पन्ने पलटने पडेगें. एक मत के अनुसार 18 वीं शताब्दी में हुगली के बारह ब्राह्माणों ने दुर्गा पूजा की शुरुआत की. परन्तु पूजा करने के लिये मूर्ति निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में ही शुरु हो गया था.


प्राचीन समय में दुर्गा पूजा में बलि दी जाती थी, जिसे रामकृ्ष्ण राय में बंद करा दिया. आधुनिक जीव्न में दुर्गा पूजा धीरे -धीरे धन कुबेरों तक सीमित रह गई है. दुर्गा पूजा पर पूजा की विधि तो प्रा़चीन काल वाली नहीं रही. आज पूजा से अधिक लोग झांकियों को देखने में आनन्द पाते है. माता की मूर्तियां श्रद्धा व विश्वास की प्रतीक है.


वे प्रतिमाएं कलात्मक है. उसमें स्त्री सौन्दर्य को देखना, मूर्खता है. दुर्गा पूजा को दिखावे, आंडबर या सामाजिक स्तर को प्रकट करने का माध्यम नहीं समझना चाहिए.


भगवान श्री राम ने भी रावण से युद्ध करने से पहले दुर्गा की पूजा की थी. आज के राम दैनिक जीवन में प्रतिदिन कई बार स्त्री के सम्मान में कमी कर रहे है. यही कारण है कि आज के पुरुष को बार-बार जीवन क्षेत्र में पराजित होना पड रहा है.


दुर्गा पूजा बंगाल में विशेष रुप से प्रसिद्ध है. दुर्गा पूजा को लेकर बंगाल की सांस्कृ्तिक जडें अत्यंत गहरी ओर आस्था के प्रति सचेत है.


महिषासुर अगर अन्याय, अत्याचार का प्रतीक है, तो माता दुर्गा शक्ति, न्याय ओर हर अन्याय के विरुद्ध विजय का प्रतीक है. उसकी आंखो में सिर्फ करुणा और दया के आंसू ही नहीं बहते, बल्कि वह क्रोध की आग भी बिखेरती है. दुर्गा जैसी महास्त्री जिसे "देवी' के नाम से भी संम्बोधित किया जाता है. दुर्गा के साथ में आसन ग्रहण करती हुई देवियां लक्ष्मी, सरस्वती क्रमश: धन और विधा का प्रतीक है. श्री गणेश हमेश से विध्न का विनाश करनेवाले है. और कार्तिकेय जीवन में विनय और सृ्जन के प्रतिक है.


माता दूर्गा की पूजा करते समय ध्यान देने योग्य बातें (Important Things to be Kept in Mind While Performing Durga Puja)

विधि-विधान से पूजा करने का उद्धेश्य यही है कि पूजा में कोई गलती न हों, और जिस कार्यसिद्धि के लिये पूजा की जा रही है, वह पूर्ण हों. और शुभ कार्य में कोई विध्न न आयें. कई बार ऎसा होता है कि हम विधि -विधान से पूजा करते है. लेकिन विचारा गया कार्य पूरा नहीं होता है. पूजा करने वाले व्यक्ति को इच्छानुसार फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है. मां दुर्गा की आराधना करते समय कई सावधानियां रखी जानी चाहिए. ध्यान रखने योग्य बातें निम्न है.


1. माता दुर्गा की पूजा में दूर्वा, तुलसी और आंवले का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त आक के फूल भी पूजा में प्रयोग नहीं किये जाते है. लाल रंग के फूल माता दूर्गा को बेहद प्रिय है. अगर हो सके तो पूजा में लाल रंग के फूलों का प्रयोग करें.


2. पूजा में प्रयोग किये जा रहे फूल शुद्ध होने चाहिए. कटे -फटे और खराब स्थिति के फूलों का प्रयोग माता की पूजा के लिये नहीं करना चाहिए. क्योकिं माता को लाल रंग के फूल पसन्द है. इसलिये प्रत्येक दिन की पूजा में ताजे लाल रंग के फूल लेने चाहिए. पुराने और बासी फूलों को पूजा में कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए. इससे की गई पूजा की शुभता में कमी होती है. लाल फूलों के अलावा चमेली, बेला, केवडा, पलाश, चंपा आदि के फूल भी पूजा के लिये लिये जा सकते है.


3. घर में अगर मां दुर्गा की एक से अधिक तस्वीरें या मूर्तियां है, तो उनकी साफ- सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. एक घर में दो से अधिक तस्वीरें या मूर्तियां रखना परिवार के लिये कष्टकारी होता है.


4. देवी की पूजा करते समय सूखे वस्त्र पहनकर ही पूजा करनी चाहिए. पूजा के समय बाल बंधे होने चाहिए.


5. हवन, पूजन और जप करते समय गले में कोई वस्त्र नहीं लपेटना चाहिए. तथा पूजन के समय ध्यान में एकाग्रता होनी चाहिए.