पुनर्वसु नक्षत्र फल

पुनर्वसु नक्षत्र

27 नक्षत्रों की श्रृंखला में पुनर्वसु नक्षत्र का स्थान सातवां होता है. भचक्र में 80:00 डिग्री से 93:20 डिग्री के विस्तार का क्षेत्र पुनर्वसु नक्षत्र कहलाता है. पुनर्वसु नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता अदिति हैं. पुनर्वसु नक्षत्र का अर्थ होता है पुन: धन, मान सम्मान की प्राप्ति होना, प्राचीन समय में पुरुष प्रकृति तारे को ही मिथुन राशि के चिन्ह रुप में मान्यता मिली है. बाणों से भरा तरकश पुनर्वसु का बोध कराता है.

पुनर्वसु का स्वामी गुरु हैं, इस कारण इसे शुभ नक्षत्र माना जाता है. पुनर्वसु नक्षत्र में तारों की संख्या को लेकर कुछ मतभेद रहे. कुछ ने दो तारों की बात कही तो कुछ के अनुसार इसमें चार तारे हैं. वहीं एक अन्य संयोजन सितारे का भी उल्लेख मिलता है जो पांच सितारों का समूह दर्शाता है. इस नक्षत्र में 2 चमकीले तारे होते हैं जो पुरुष और नीचे दो तारे प्रकृति को दर्शाते हैं. यह चारों मिलकर आयताकार भवन के रुप में दिखाई पड़ते हैं, जो बसने को दर्शाते हैं.

पुनर्वसु नक्षत्र - शारीरिक गठन और व्यक्तित्व विशेषताएँ

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मा जातक मनोहर स्वरुप का, लम्बी जंघा वाला होता है. चहरे पर या सिर पर कहीं कोई चिन्ह हो सकता है. रक्तिम नेत्र व घुंघराले बाल हो सकते हैं. मृदुभाषी एवं मन को भाने वाला. इस नक्षत्र में जन्मा जातक सदाचारी व सहनशील गुणों से युक्त होता है. संतोषी तथा बुरे से बचने का प्रयास भी करता है. यदि वह बुरी संगत में पड़ता है तो उसकी सकारात्मक ऊर्जा क्षीण होती है और उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा का भी ह्रास होता है.

जातक भगवान पर विश्वास करने वाला होता है. कुछ के अनुसार धार्मिक रुप से कट्टर भी हो सकते हैं, धर्म के चलते इनमें पुरातन विचारधाराओं एवं मान्यताओं के प्रति बहुत आस्था होती है. इनके विचारों का पता लगा पाना आसान नहीं होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मा जातक लेने-देन के व्यवसाय में योग्य होता है. पुनर्वसु नक्षत्र वैश्य जाति का नक्षत्र है इस कारण जातक कुशल रुप से वणिक के कार्यों को करता है. व्यर्थ के जोखिम उठाने से बचता है. सुरक्षा एवं सुरक्षित पूर्ण उपायों को अधिक महत्व देता है. जातक धर्म के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ता है. पर अगर कहीं नक्षत्र पाप पीड़ित हो तो ऐसी स्थिति में जातक आलसी, अकर्मण्य बनता है. जातक डरपोक भी हो सकता है.

विद्वानों के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक कई बार यदि अपने प्रथम प्रयास में सफल न हो सके तो वह निराशा और हताशा में भर जाता है किंतु यदि वह पुन: प्रयास करे तो उसे सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है. जातक में भावुकता उदारता व संवेदनशीलता के गुण मौजूद होते हैं. इस जातक में लक्ष्य को पानी की चाह बहुत तीव्र होती है.

पारिवारिक जीवन

जातक माता-पिता का आज्ञाकारी होता है. गुरू का सम्मान करने वाला होता है. वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है. जातक का दूसरा विवाह हो सकता है अथवा तलाक की परिस्थितियां का सामना भी करना पड़ सकता है. जातक को जीवन साथी के स्वास्थ्य को लेकर मानसिक चिंताएं बनी रह सकती हैं. जीवन साथी के रूप में उत्तम पत्नी एवं गृहिणी प्राप्त होती है. जातक परिवार में अन्य लोगों के साथ मनमुटाव की स्थिति रह सकती है. पारिवारिक उलझनों के चलते मानसिक रुप से बीमार रह सकता है. पति मनोहर स्वरूप होता है जातक को संतान का सुख प्राप्त होता है.

स्वास्थ्य

यह सातवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे भाग के अधिकार में कान, गला व कंधे की हड्डियाँ आती हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में फेफड़े, श्वसन प्रणाली, छाती, पेट, पेट के बीच का भाग, पेनक्रियाज, जिगर तथा वक्ष आता है. ऊंगलियां एवं नासिका को पुनर्वसु का अंग माना जाता है. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इस नक्षत्र से संबंधित भागों में बीमारी होने की संभावाना बनती है. जातक को कोई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्या परेशान नहीं करती है, परंतु छोटी-छोटी बिमारियां अधिक परेशान करती हैं. जातक को पीलिया, क्षयरोग, निमोनिया, कान तथा पेट से संबंधित बिमारियां परेशान कर सकती हैं.

पुनर्वसु नक्षत्र जातक का व्यवसाय

इस नक्षत्र में जातक शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम करता है. लेखन का काम, अभिनेता, चिकित्सक इत्यादि के कार्य अनुकूल रहते हैं. संगीत व नृत्य में पारंगता मिलती है. वाणिज्य, व्यापार, ज्योतिष साहित्य का रचयिता, गूढ़ विद्या में निपुण होता है. यात्रा एवं पर्यटन, होटल, रेस्तरां के कार्य अनुकूल होते हैं. धर्म गुरू, मठाधीश, पुरोहित के काम में सफलता मिल सकती है. मनोवैज्ञानिक दार्शनिक के काम भी उचित होते हैं.

इतिहासविद, प्राचीन एवं दुलर्भ वस्तुओं का विक्रेता, कृषि कार्य, पशुपालन, डाक विभाग, मंदिर प्रबंधन, सभी प्रकार के खेलकूद, खोज यात्रा तीर्थ यात्रा, दवाखाना एवं आरोग्य लाभ से जुड़े विभिन्न कार्य कर सकते हैं. सेवार्थ के कार्य भी इस नक्षत्र के जातक के लिए हो सकते हैं.

पुनर्वसु नक्षत्र का प्रथम चरण

लग्न या चंद्रमा, पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण में आता हो तो ऐसा जातक लाल वर्ण से युक्त हो सकता है, शस्त्र अस्त्र विद्या में निपुण होता है. छाती बड़ी और आंखे उभरी हुई होती हैं. हास-परिहास करने वाला होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र का दूसरा चरण

लग्न या चंद्रमा, पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण में आता हो तो जातक सांवले रंग का, भारी शरीर का, सुंदर व शृंगार में रुचि रखने वाला होता है. मधुर भाषी होता है. मांसल शरीर युक्त, स्वभाव से खुद्दार होता है. कला के प्रति रुचि रखने वाला होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र का तीसरा चरण

लग्न या चंद्रमा पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में जातक की आंखें गोल व सफेदी युक्त होती हैं. सुंदर शरीर वाला होता है. बुद्धि बली, रति में निपुण, विज्ञान व साहित्य में बहुत रुचि रखने वाला होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र का चौथा चरण

लग्न या चंद्रमा, पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में आता हो तो जातक साफ स्वच्छ शरीर का स्वामी होता है. बडा़ पेट व सुंदर बालों से युक्त, मुख में प्रसन्नता होती है. पतला शरीर व पतली भुजाओं से युक्त होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र के नामाक्षर

पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण या प्रथम पाद में जो 20:00 से 23:20 तक होता है. इसका अक्षर “के” होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण या द्वितीय पाद में जो 23:20 से 26:40 तक होता है. इसका अक्षर “को” होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण या तृतीय पाद में जो 26:40 से 30:00 तक होता है. इसका अक्षर “हा” होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण या चतुर्थ पाद में जो 00:00 से 03:20 तक होता है. इसका अक्षर “ही” होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स पिता स पुत्र:

विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम अदितिर्रजनित्वम ।

ॐ आदित्याय नम: ।

उपाय

पुनर्वसु नक्षत्र के बुरे प्रभावों से बचने के लिए देव माता अदिति, दुर्गा लक्ष्मी एवं मॉं काली की उपासना करना शुभदायक होता है. इसके साथ ही बुध मंत्र एवं सूर्य मंत्र का जाप करना उत्तम होता है. इस नक्षत्र के जातक के लिए पुखराज धारण करना भी अनुकूल होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र अन्य तथ्य

नक्षत्र - पुनर्वसु

राशि - मिथुन-3,कर्क-1

वश्य - नर-3, जलचर-1

योनी - मार्जार,

महावैर - मूषक

राशि स्वामी - बुध-3,चंद्र-1

गण -देव

नाडी़ - आदि

तत्व - वायु-3, जल 1

स्वभाव(संज्ञा) - चर

नक्षत्र देवता - अदिति

पंचशला वेध - मूल


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