भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा | Bhadrapad Adhikmas Purnima

भाद्रपद माह में अधिकमास पड़ रहा है. इस माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है. इस माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन स्नानादि कर्म से निवृत होकर भगवान सूर्य नारायण का पुष्प, अक्षत तथा लाल चंदन से पूजन करें. फिर शुद्ध घी, गेहूँ और गुड. के मिश्रण से पूएँ बनाने चाहियें तथा फल, वस्त्र, मिष्ठान और दक्षिणा समेत दान करना चाहिए. आप यह दान अपनी सामर्थ्यानुसार ही करें. दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए.

“ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: । अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।।”

इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-

“यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम । शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।।”

भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा पूजा | Bhadrapad Adhikmas Purnima Puja

भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्य नारायण जी कि कथा की जाती है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ गेहूँ के आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगाया जाता है.

सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है. भाद्र पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, पोखर, कुआं या घर पर ही स्नान करके भगवानविष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए. भाद्रपद मास में ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देनी चाहिए तथा पितरों का तर्पण करना चाहिए. भाद्रपूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है.

इस वर्ष भाद्रपद मास अधिक मास होने के कारण इस पूर्णिमा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है इस समय व्रत एवं पूजा पाठ द्वारा व्यक्ति को सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस माह की कृष्ण्पक्ष की सप्तमी को कृतिका नक्षत्र के योग में दान तथा विष्णु पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है.

अधिक मास पूर्णिमा व्रत का महत्व | Importance of Bhadrapad Adhikmas Purnima

जो व्यक्ति मलमास में पूर्णिमा के व्रत का पालन करते हैं उन्हें भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए.  श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.

अधिक मास पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा - पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.

इस समय स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए. इसमें धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है. पूर्णमासी के दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है.