शिवाष्टक | Shivashtak - Shivashtakam

भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों के समस्त दुखों को दूर करने वाले समस्त जगत के स्वामी हैं. इन्हीं की कृपा दृष्टि को प्राप्त करके जीव अपने स्वरुप को जान पाता है. प्रभु की भक्ति से भक्त के समस्त कष्टों का क्षय होता है. भगवान महादेव जिनकी महिमा का बखान पुराणों में, वेदों में और शास्त्रों में विस्तार पूर्वक कही गई है जो सृष्टि के प्रणेता आदिदेव हैं तथा त्र्यम्बकम शिव साकार, निराकार, ॐकार और लिंगाकार रूप में सभी के द्वारा पूजे जाते हैं.

भगवान शिव भक्त की पुकार सुनकर उसकी सभी पीड़ाओं का हरण कर लेते हैं. पौराणिक कथाओं में भी भगवान भोलेनाथ दया निधि और कृपालु स्वरुप की छवि के दर्शन होते हैं. सृष्टि को बचाने हेतु उन्होंने विष का पान की या सृष्टि के कल्याण के लिए भगवान शिव ने माता गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया ऎसी अनेक कथाओं से प्रभु के सर्वकल्याण रुप के दर्शन होते हैं.

भक्त को स्नान के पश्चात स्वच्छ व सफेद वस्त्र पहन शांत मन से शिवालय या घर पर ही भगवान का स्मरण करना चाहिए. महादेव पर चंदन, वस्त्र, अक्षत, बिल्वपत्र, फल-फूल इत्यादि अर्पण करने चाहिए. भगवान शिव की स्तुति में कई अष्टकों की रचना की गई है जिसमें से शिवाष्टक, लिंगाष्टक, रूद्राष्टक इत्यादि नाम प्रमुख हैं. यह शिवाष्टक आठ पदों में विभक्त शिव आराधना है.

तस्मै नम: परमकारणकारणाय , दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय ।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय , ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥ 1 ॥

श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय , शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय ।
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय , लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥ 2 ॥

पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय , कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय ।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय , नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय ॥ 3 ॥

लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय , दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय ।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय , त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय ॥ 4 ॥

दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय , क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय ।
ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय , योगाय योगनमिताय नम: शिवाय ॥ 5 ॥

संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय , रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय ।
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय , शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय ॥ 6 ॥

भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय , सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय ।
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय , गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय ॥ 7 ॥

आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय , यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय ।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय , गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ॥ 8 ॥

इन पदों में भगवान शिव स्वरुप को उल्लेखित किया गया है जिसके अनुसार भगवान शिव कारणों के कारण हैं. अग्नि के समान अति उज्ज्वल नेत्रोंवाले हैं, जिन पर सर्प हार रुप में विराजित हैं. भगवान शिव जो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र को भी वर देने वाले हैं मैं उन्हीं शिव को नमस्कार करता हूँ.

चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा ही सुसजित शिव का कैलास एवं महेन्द्रगिरि निवासस्थान हैं और जो त्रिलोकों के दुख को दूर करनेवाले हैं, उन शिव को मैं नमस्कार करता हूँ. पद्मरागमणि कुण्डलों, अगरू तथा चन्दन, भस्म, कमल और जूही से सुशोभित नीलकण्ठ शिव को मैं नमस्कार करता हूँ. जटाओं सहित मुकुट धारण करने वाले व्याघ्रचर्म धारण किए हुए मनोहर और तीनों लोकों के देव जिनके चरणों में सिर झुकाते हैं, उन शिव जी को मेरा नमस्कार है. दक्षप्रजापति महायज्ञ का ध्वंस करने वाले, त्रिपुरासुर का अन्त करने वाले तथा दर्पयुक्त ब्रह्मा के पंचम सिर को काटने वाले शिव को मेरा नमस्कार है.

घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम, राक्षस, पिशाचों तथा सिद्धगणों से घिरे, सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादि से पूजित, बाघम्बर धारण किये हुए हैं भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ. ऋषि, भक्तगण जिनके आश्रित में हैं, जिन्हें देवी पार्वतीजी नेत्रों द्वरा देखती हैं तथा जिनका वर्ण दुग्ध धारा समान श्वेत है उन शिव को मेरा नमस्कार है. सूर्य, चन्द्र, वरूण एवं पवन द्वार सेवित, यज्ञ एवं अग्निहोत्र में जिनका निवास है. वेद तथा मुनिगण जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्वरपूजित शिव जी को मैं नमस्कार करता हूँ.

इस प्रकार जीव की सांसारिक जीवन में उत्पन्न समस्त परेशानियों से मुक्ति या कामनासिद्धि के लिए यदि व्यक्ति भगवान शिव के शिवाष्टक मंत्रों का पाठ करता है तो निसंदेह उसे कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा प्रभु की भक्ति से उनको सानिध्य प्राप्त होता है.