मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 23 नवंबर 2024 को भैरव जयंती का उत्सव मनाया जाएगा. भैरव को भगवान शिव का ही एक रुप माना जाता है और भैरव शिव के अंशावतार हैं. भैरव का जन्म अष्टमी तिथि पर हुआ

कार्तिक मास की 30वीं तिथि को “कार्तिक अमावस्या” के नाम से मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व रहता रहा है. प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या किसी न किसी रुप में कुछ खास लिए होती है. हर महीने में एक बार आने वाली अमावस्या

कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना गया है, स्कंद पुराण

भाद्रपद माह की अमावस्या पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. इस वर्ष 03 सितंबर, 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. पिठोरी अमावस्या के दिन स्नान-दान का महत्व होता है. इस दिन पवित्र नदियों ओर धर्म स्थलों के दर्शन किए जाते हैं. अमावस्या तिथि के दौरान

भारत जैसे विशाल भूभाग पर संस्कृतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस संगम में अनेकों व्रत व त्यौहार, भिन्न भिन्न विचारधारें आकर मिलती हैं. इन सभी का रंग किसी न किसी रुप में सभी को प्रभावित भी करता है. इसी में आता है एक पर्व कौमुदी

देव प्रबोधिनी एकादशी, सभी एकादशियों में से ये एकादशी एक अत्यंत ही शुभ और अमोघ फलदायी एकादशी होती है. देव प्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवुत्थान एकादशी इत्यादि नामों से जानी जाती है. वैष्णव संप्रदाय में एकदशी तिथि को बहुत ही शुभदायक

भीष्म पंचक का समय कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है और कर्तिक पूर्णिमा तक चलता है. पूरे पांच दिन चलने वाले इस पंचक कार्य में स्नान और दान का बहुत ही शुभ महत्व होता है. धार्मिक मान्यता अनुसार भीष्म पंचक के समय व्रत करने भी

कुबेर देव का पूजन करना जीवन में शुभता और आर्थिक समृद्धि को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा को विशेष रुप से दिपावली के समय पर किया जाता है. कुबेर जी को धनाध्यक्ष और अपार धन दौलत का स्वामी माना गया है. यह धन के देवता है और यक्षों के

कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन विश्वकर्मा पुजन होता है. इस उत्सव पर निर्माण और सृजन के देवता विश्वकर्मा का पूजन होता है. मान्यता अनुसार विश्वकर्मा पूजन के दिन सभी प्रकार की मशीनों, शस्त्रों इत्यादि मशीनों की भी पूजा की जाती है.

अन्नकूट पर्व अपने नाम के अर्थ को सिद्ध करता है. इस दिन अन्न का पूजन होता है और भगवान को ढेर सारे पकवानों का भोग लगाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है. यह पर्व एक सांस्कृतिक धरोहर भी है. यह

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को त्रिपुरोत्सव का पर्व मनाया जाता है. प्रदोषव्यापिनी इस पर्व को विधि विधान से मनाने का कार्य प्राचीन समय से ही चला रहा है. पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले इस पर्व को सभी लोग बहुत श्राद्ध और विश्वास के साथ

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को आश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. संपूर्ण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा तिथियों की भांति इस पूर्णिमा का भी अपना एक अलग प्रभाव होता है. आश्विन पूर्णिमा को संपूर्ण भारत वर्ष में अनेक नामों

धर्म ग्रंथों में धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है. धर्म ग्रंथों में प्रत्येक देवता किसी न किसी शक्ति से पूर्ण होते हैं. किसी के पास अग्नि की शक्ति है तो कोई प्राण ऊर्जा का कारक है, कोई आकाश तो कोई हवा का संरक्षक बनता है. इसी श्रेणी

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. आंवला नवमी को कुष्माण्ड नवमी और अक्षय नवमी पर्व के नाम से भी मनाया जाता है. आंवला नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान करने का बहुत महत्व बताया गया है. आंवला

आश्विन मास की अमावस्या तिथि आश्विन अमावस्या के नाम से जानी जाती है. हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास कि अमावस्या के दिन श्राद्ध कार्यों का अंतिम दिन होता है. इसके साथ ही तर्पण के काम समाप्त होते हैं. कृष्ण पक्ष की आश्विन अमावस्या को सर्व

जैन धर्म से संबंधित ज्ञान पंचमी सभी के लिए एक अत्यंत ही पूजनीय और महत्वपूर्ण दिवस है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान पंचमी' का पर्व मनाया जाता है". मान्यताओं के अनुसर इसी शुभ समय पर भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित

माँ दुर्गा की पूजा में प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है. इसमें अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय नवरात्रि का होता है. नव रात्रि अर्थात देवी पूजा के वो नौ दिन, जब हर एक दिन एक अलग रुप में होता है. साधक के लिए यह सभी नौ दिन उसकी उपासना और

शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के साथ जुड़ा है. शिवरात्रि का दिन अत्यंत ही शुभ और मनोकामनाओं की पूर्ति वाला होता है. शिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता है. इस वर्ष 02 अगस्त 2024 को श्रावण शिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. शिवरात्रि के पर्व समय

गायत्री माता को हिन्दू भारतीय संस्कृति में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. जीव और जगत के मध्य जो संबंध है वह माँ गायत्री के द्वारा ही संभव हो पाता है. गायत्री को ही चारों वेदों की उत्पति का आधार भी माना गया है. गीता में भगवान श्री

आश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को कोजागर व्रत किया जाता है. कोजागर व्रत माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए होता है. इस दिन मुख्य रुप से लक्ष्मी पूजन करते हैं. लक्ष्मी मां के आशीर्वाद से जीवन में किसी भी प्रकार की आर्थिक तंगी नही आती