अधिक मास उद्यापन विधि | Udyapan Rituals for Adhikmaas

अधिक मास के समय के दौरान बहुत से लोग व्रत, जप, तप और साधना करते हैं भगवान विष्णु के पूजन का ये विशेष समय होता है. इस पूरे अधिक मास को मल मास, प्भुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है इसमें पूजा और तप को ही महत्व दिया गया है. जब ये माह समाप्त होता है तो इसके उद्यापन का भी बहुत महत्व रहा है. अधिक मास के अंतिम दिन में प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को लाल पुष्प, चंदन अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य देना चाहिए. विविध प्रकार के अन्न, वस्त्र, घी-गुड़ और गेहूं के बनाए हुए तैंतीस पूओं को पात्र में रख कर, फल, मिष्ठान वस्त्र और दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करना चाहिए. दान समय उक्त मंत्र जाप करें-

"ऊँ विष्णूरुपी सहस्त्रांशु: सर्वपापप्रणाशन:। अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु।।"

इसके बाद भगवान विष्णु को प्रार्थना करें -

"यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम्:| शंख: करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु।।"

अधिक मास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास पाठ एवं निम्न मंत्रों सहित गुड़ गेहूं, घी, मिष्ठान, दाख, केला, वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित भगवान को तीन बार अर्घ्य देकर भगवान नारायण के 33 नाम मंत्र जाप करें - विष्णुं, जिष्णुं, महाविष्णुं, हरिं, कृष्णं, अधोक्षजम, केशवं, माधवं, रामं, अच्युत्यं, पुरुषोत्तमम्, गोविन्दं, वामनं, श्रीशं, श्री कृष्णमं, विश्वसाक्षिणं, नारायणं, मधुरिपुं, अनिरिद्धं, त्रिविक्रमम् , वासुदेवं, जगद्योनिं, अनन्तं, शेयशानियम्, सकर्षणं, प्रद्मुम्नं, दैत्यरिं, विश्वतोमुखम् , जनार्दनं, धरावासं, दामोदरं, मघार्दनं, श्रीपतिं च. अधिक मास में किए गए  व्रत, दान, पूजा, हवन इत्यादि  ने से पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है. भागवत पुराण तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गये सभी शुभ कर्मो का कई गुना फल प्राप्त होता है.