हस्तरेखा शास्त्र में अंगूठे का महत्व - भाग 1 | Importance of Thumb in Palmistry - Part 1

हस्त रेखा शास्त्र में अंगूठे का अत्यधिक महत्व माना गया है. इसे हथेली का राजा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. अगर अंगूठा ना हो तो हम इसके बिना किसी काम के करने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आज हम आपको अंगूठे की विशेषताओ के बारे में बताएंगें कि अंगूठा किस प्रकार व्यक्ति के विवेक के बारे में बताता है.

अंगूठे का आकार व लंबाई | Shape and Size of a Thumb

आरंभ हम अंगूठे के आकार व लंबाई से करते हैं. पहली अंगुली के तीसरे पोर के आधे भाग तक पहुंचने वाले अंगूठे को सामान्य आकार का माना गया है. दूसरी श्रेणी का अंगूठा वह होता है जो पहली अंगुली में सामान्य से कम पहुंचता है और छोटा अंगूठा कहलाता है. तीसरी श्रेणी में बड़ा अंगूठा आता है जो बड़ा होने पर सामान्य से लम्बा होता है.

सामान्य आकार का अंगूठा विकसित मस्तिष्क का परिचायक होता है. व्यक्ति संतुलित रहता है और अच्छे-बुरे की समझ रखता है. सामान्य से छोटा अंगूठा कम विकसित मस्तिष्क का परिचय देता है और ऎसा व्यक्ति मूल प्रवृतियों में लिप्त रहता है. यहाँ मूल प्रवृत्तियों से अर्थ है कि व्यक्ति भूख, प्यास, काम, क्रोध आदि बातों में ही उलझा रहता है.

सामान्य से अधिक लम्बा अंगूठा व्यक्ति में सत्ता की चाह पैदा करता है. ऎसा व्यक्ति प्रभावशाली होता है. यदि ऎसे अंगूठे के साथ तर्जनी लंबी हो और गुरु पर्वत भी विकसित होता है तब व्यक्ति की सत्ता पाने की चाहत पूरी होने की संभावना बनती है.

अंगूठा हाथ में किस भाग से उदय हो रहा है यह भी महत्व रखता है. अगर अंगूठा कलाई के पास से उदय हो रहा है तब व्यक्ति बुद्धिमान होता है और उसमें मानवीय विशेषताएँ होती हैं अर्थात वह सभी के सुख दुख को समझने वाला होता है.

यदि अंगूठा आक्रामक मंगल के पास से उदय हो रहा है तब ऎसा व्यक्ति शारीरिक बल का उपयोग करता है. वह शारीरिक बल से ही अपनी इच्छाओं को पूरा करने की चाह रखने वाला होता है. यदि आक्रामक मंगल का यह क्षेत्र भी अति विकसित होता है तब व्यक्ति झगड़ालू किस्म का होता है.

आक्रामक मंगल के पास से निकला हुआ अंगूठा यदि पहली अंगुली के पहले पोर तक पहुंच भी जाए तब भी उसे छोटे अंगूठे की श्रेणी में रखा जाता है क्योकि उसका उदगम स्थल ऊपर से होता है.

अंगूठे की गाँठ और पोर | Ends and Mounts in a Thumb

आइए अब हम अंगूठे के पोरो व गाँठो की बात करते हैं. अंगूठे के मुख्य रुप से दो पोर होते हैं. अंगूठे का नाखून वाला हिस्सा पहला पोर कहा जाता है तथा हथेली से लगा हिस्सा दूसरा पोर होता है. पहले पोर से व्यक्ति की संकल्प शक्ति का पता चलता है कि वह कैसी है.

अंगूठे के दूसरे पोर से व्यक्ति की विचार शक्ति का पता चलता है कि वह किस दिशा की ओर है अथवा व्यक्ति की विश्लेषण शक्ति का पता चलता है. दोनो पोरो के मध्य गाँठ उभरी हुई दिखाई दे तब ऎसा व्यक्ति सदा सचेत व सावधान रहने वाला होता है.

यदि दोनो पोरो के मध्य की यह गाँठ मुलायम होती है तब व्यक्ति लापरवाह हो सकता है. ऎसे व्यक्ति में सावधान रहने की कमी होती है. पहला पोर यदि दूसरे से बड़ा होता है तब ऎसा व्यक्ति जल्दबाजी में उतावलेपन में काम करता है. कोई काम करने से पूर्व सोच विचार नहीं करते हैं. ऎसे व्यक्ति की संकल्प शक्ति को अधिक प्रभावी मान गया है तभी वह ऎसे काम करता है.

दूसरा पर्व यदि पहले से अधिक लंबा है तब ऎसा व्यक्ति सोचता ज्यादा है और काम कम करता है. अंगूठे के दोनो पोर बराबर होने पर व्यक्ति की कर्मशक्ति व चिंतन शक्ति में संतुलन बना रहता है. जो सोचत है उसे करता भी है. लंबे अंगूठे वाले व्यक्ति की संकल्पशक्ति किसी भी व्यक्ति के लिए हानिकर नहीं होती है.

छोटे अंगूठे वाले व्यक्ति में मानवता का भाव कम होता है. ऎसा व्यक्ति केवल अपने लिए ही सोच सकता है, दूसरों से उसे कोई मतलब नहीं रहता है. यदि छोटे अंगूठे का दूसरा पोर लंबा है तब ऎसा व्यक्ति आलसी होता है. ऎसा व्यक्ति मस्तिष्क से सोचता कम है और ना ही कुछ काम करने की योग्यता ही होती है.

“हस्तरेखा शास्त्र में अंगूठे का महत्व - भाग 2”